बचपन का फेर | Bachapan Ka Pher
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२२ पचपनका फर
खेती करो, हल चलाओ ! स्वय भी सुख भोगोगे, देदको भी
लाभ होगा । आजकल जितना पैसा जमीन पैदा कर रही
है और किसी काममे नहीं मिलेगा | में सच कहता हूँ कि
यदि मैने श्रपना पैसा इधर-उधर न फंसाया होता तोम तो खेती
ही करता ।
नन्दा-- यह वानप्रस्थ भ्राश्रमकी बेकार जिन्दगीसे तो हजार दर्ज श्रच्छा
रहेगा ।
हरगोपाल--नही, भई, यह मुझसे न होगा । सारा दिन आकाशकी ओर
देखते रहो कि कब वर्षा हो और कब खेतोमे बीज उगे । मेने
तो निश्चय कर लिया है कि एकान्तम बैठ कर गीता, वेद तथा
उपनिषदोका श्रघ्ययन करूगा । ५
चोपडा- [ घड़ी देख कर व्यंग्यससे | ्रच्छा तो, सन्यासीजी, प्रणाम ।
अब हमे आज्ञा दीजिए ।
हरगोपाल---बैठो न, जल्दी লঘা ই ?
चोपड़ा-- भई, श्रभी स्नान श्रादि करना है, फिर समाज जागा ।
नन्दा-- आजके अखबारमे एक विज्ञापन है। में तो उसके लिए अरज़ी
भेजना चाहता हूँ। छोटे-छोटे बच्चे है, में तो सनन््यासका
विचार भी नही कर सकता ।
[ दोनों उठकर चल देते हे |
हरगोपाल--कमला ! कमला !
कमला-- [ अन्दर ही से | सामान बाँध रही हूँ ।
'हरगोपाल--थोड़ी देरके लिए छोड दो । जरा इधर आझो, जरूरी काम है ।
| कमला आती है ]
कसला-- कहो, अब क्या सूझी ?
हरगोपाल---देखो, व्यग्य करना छोड दो । मेरी सलाह है कि तुम लोग तो
चलो दरियागज और मे जाता हूँ देहरादून | वहाँ दस पदरह
User Reviews
No Reviews | Add Yours...