बचपन का फेर | Bachapan Ka Pher

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bachapan Ka Pher by विमला लूथरा - Vimala Loothara

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विमला लूथरा - Vimala Loothara

Add Infomation AboutVimala Loothara

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
२२ पचपनका फर खेती करो, हल चलाओ ! स्वय भी सुख भोगोगे, देदको भी लाभ होगा । आजकल जितना पैसा जमीन पैदा कर रही है और किसी काममे नहीं मिलेगा | में सच कहता हूँ कि यदि मैने श्रपना पैसा इधर-उधर न फंसाया होता तोम तो खेती ही करता । नन्दा-- यह वानप्रस्थ भ्राश्रमकी बेकार जिन्दगीसे तो हजार दर्ज श्रच्छा रहेगा । हरगोपाल--नही, भई, यह मुझसे न होगा । सारा दिन आकाशकी ओर देखते रहो कि कब वर्षा हो और कब खेतोमे बीज उगे । मेने तो निश्चय कर लिया है कि एकान्तम बैठ कर गीता, वेद तथा उपनिषदोका श्रघ्ययन करूगा । ५ चोपडा- [ घड़ी देख कर व्यंग्यससे | ्रच्छा तो, सन्यासीजी, प्रणाम । अब हमे आज्ञा दीजिए । हरगोपाल---बैठो न, जल्दी লঘা ই ? चोपड़ा-- भई, श्रभी स्नान श्रादि करना है, फिर समाज जागा । नन्दा-- आजके अखबारमे एक विज्ञापन है। में तो उसके लिए अरज़ी भेजना चाहता हूँ। छोटे-छोटे बच्चे है, में तो सनन्‍्यासका विचार भी नही कर सकता । [ दोनों उठकर चल देते हे | हरगोपाल--कमला ! कमला ! कमला-- [ अन्दर ही से | सामान बाँध रही हूँ । 'हरगोपाल--थोड़ी देरके लिए छोड दो । जरा इधर आझो, जरूरी काम है । | कमला आती है ] कसला-- कहो, अब क्‍या सूझी ? हरगोपाल---देखो, व्यग्य करना छोड दो । मेरी सलाह है कि तुम लोग तो चलो दरियागज और मे जाता हूँ देहरादून | वहाँ दस पदरह




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now