हिंदी - आन्दोलन | Hindi Aandolon

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Hindi Aandolon by लक्ष्मीकान्त वर्मा - Laxmikant Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राष्ट्र पिता बापू के वचन अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिये भी हमें थारतीय भाषा-समूह में से एक ऐसी भाषा को आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता और समझता है और जिसे दूसरे लोग भी आसानी से सीख और समझ सकें । हम लोग अपनी सातृ-भाषा के बजाय अंग्रेज़ी भाषा के प्रति अधिक प्रेम रखने लगे हैं इसलिए सुशिक्षित और राजनेतिक मनोवृत्ति वाले वर्गों और साधारण जन-समूह के बीच गहरी खाईं पंदा हो गई है। अपनी सातू-भाषा में गूढ़ विद्ार व्यवत करने का वृथा प्रयत्न करते हुए हम गोते खाते हैं। विज्ञान के पारिभाषिक शब्दों के लिए हमारे पास समानाथेंक शब्द नहीं हैं। इसका परिणाम अत्यन्त दुखद हुआ है। सर्व-साधारण जन-समूह आधुनिक विचार-सरणी से _ जुदा पड़ गया है। हम अपने युग के इतने सब्निकट हैं कि भारतवर्ष की महानू भाषाओं के प्रति हमारे इस दुलंकष्य के कारण भारत की जो असेवा हुई है हमारे लिये उसका ठोक-ठीक क्षतुमान कर सकना प्राय कठिन है। यह बात सहज ही समझ में आ सकती है कि जब तक हम बुराई को दूर न करेंगे तब तक साधारण जनता का सानस दिसाग बंधन सें ही जकड़ा रहेगा। स्वराज्य के निर्माण सें आम जनता कोई ठोस हिस्सा अदा न कर सकेगी। अहिसा के आधार पर स्थापित स्वराज्य में यह आवदयक है कि स्वतंत्रता के आन्दोलन में हर व्यक्ति अपना हिस्सा स्वयं अदा करे। जनता जब तक उसके स्वराज्य के लिये उठाये जाने वाले हर कदस को उससे निकलने वाले सब अर्थों सहित पुरी तरह न समझ ले तब तक वह ऐसा नहीं कर सकती । और यह तब तक असस्भव है जब तक जो कुछ भी कदम उठाया जाये उसका मतलब उसकी अपनी भाषा में न समझा जाये । इसके सिवा अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिये हमें भारतीय भाषा-समूह में से ऐसी एक भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहुले से ही जानता और समझता है और जिसे दूसरे लोग भी आसानी से सीख और समझ सकें। वह भाषा निविवाद रुप से हिन्दी है। इसे उत्तर भारत के हिन्दू और सुसलमान दोनों ही जानते और समझते हैं। जब यह फारसी लिपि में लिखी जाती है तब उसे उर्दू कहते हैं। . - १९२० से आम जनता को राजनीतिक दिक्षा देने के लिए हिन्दुस्तानी भाषाओं के साथ ही राजन तिक विचार रखने वाले आसानी से बोल सकें और कांग्रेस के घाधिक अधिवेश्नों और सहाससिति की बेठकों के अवसर पर एक सात्र भिन्न-भिन्न प्रास्तों के कांग्रेस जन आसानी से समझ सकें ऐसी एक अखिल भारतीय राष्ट्रभाषा का महत्व स्वीकार करने का विचार-पूर्वक प्रयत्त किया जाने लगा । लेकिन मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि बहुत-से कांग्रेसवादी इस प्रस्ताव पर असल न कर सके। और इसलिए कांग्रेसवादियों के स्वयं अंग्रेज़ी में ही बोलने पर जोर देने और अपनी खातिर दूसरों को भी अंग्रेजी




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