महान पाश्चात्य शिक्षा -शास्त्री | Mahaan Paschatya Shiksha Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १] ( महान्‌ पाश्चात्य शिक्षाशास्त्री प्लेटो के शिक्षा-सम्बन्धों संद्धान्त उसकी दो प्रसिद्ध पुस्तकों में मिलते हैं । वे पुस्तक “दी रिपब्लिक? (196 1१८ए०पा०1८) और “दी लाज़ ( 1४6 1,७४8) शिक्षा सम्बन्धी दै। प्लेटो ऋ कतिया वार्तालाप के रूप में हैं | वार्तालाप वास्तव ४. में नाटकीय और घटना, व्यंग्य, नथा सजीव चरित्र-चित्रण से रचनाएँ वी त्रोतप्रोत ह । श्रधिकांश वार्तालाप मे मुख्य अंश घुक्यत दाय वहलाया गया है जिनमें प्लेटो ने श्रपने दाशंनिक विचारों को प्रकट किया है | दि रिपच्लिकः साहित्य एवं विचार दोनो दृष्टियों से एक महान्‌ पुस्तक है और इसने संसार के अधिकांश दाशनिकों, राजनीतिशों तथा शिक्षाशात्रियों पर प्रभाव डाला है। रूसो ने ठीक ही कहा है कि 'दी रिपब्लिक' शिक्षाशात्र का श्रत्युत्तम गवेषणा-मरंथ है। “दी लाज़? जिसे प्लेटो ने अपनी दृद्धावस्था में लिखा था, उसकी अत्यन्त बृहद्‌ गूढ़ और व्यावहारिक कृति है। इसमें नीतिशासत्र और शिक्षाशासत्र दोनों पर उसके अत्यन्त परिपक्व विचार संग्रहीत | प्लेटो का दशंन प्लेटो के शिच्ता-सम्बन्धी विचार उसे दार्शनिक विचारों पर आधारित हैं । उसके शिक्षा-सम्बन्धी विचारों को मली-भाँति तथा अपनी प्राकृतिक श्रवस्था में और दार्शनिक विचारों श्वम्‌ शुद्ध रूप में ज्ञात करने के लिए उसके दार्शनिक का महत्त्व सिद्धान्तों के विकास का अध्ययन करना आवश्यक है, अन्यथा हम उसके शिक्षा-सम्बन्धी विचारों के वास्तविक महत्व को न समझ सकेंगे | अतएव हम प्लेटो के प्रधान दाश निक संकेतों पर विचार करेंगे | प्लेटो को एक श्रादर्शवादी दाशंनिक की संज्ञा दी गईं है क्योकि उसके विचार से विचारों का जगत ही वास्तविक और सत्य है? | उसके इस विचार-प्रियता के कारण, उसके दर्शन के कुछ विद्यार्थी उसे 'विचारवादीः कहना उचित समभते हैं। उसका यह विचार था कि यह भौतिक जगत जिसको हम पत्यक्ष शानेन्द्रियों के द्वारा देखते, स्पर्श करते एवम्‌ श्रनु- भिव करते है; मिथ्या সম मात्र है। यह सम्पूर्ण प्रत्यक्ष जगत्‌ त्रुटि दोष से पूर्ण वहतावस्था में है। अ्रतएव प्लेटो एक ऐसे सत्य एवम महिमामंडित जगत्‌ की कल्पना करता है जिसमें वास्तविक चीज़ें प्राप्त की जा सकती है ) इस जग॑त्‌ को वह विचारों की निरयाः कहता है । इख जगत्‌ मे हम उन समस्त वास्तविक एवम्‌ সাহা বত্তঙ্গী को ग्राप्त कर सकते हैं जिसकी प्रतिछाया हम प्रत्यक्ष जगत्‌ में देखते हैं। ये वस्तुं श्रपने मे पूणं, श्रपरिचतं नशील. चिरंतन एवम शाश्वत ह | श्रतएव प्लेटो के विचार श्रादशंवाद




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