हीन भाव | Heen Bhaav

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Heen Bhaav by जी० पी० सिंह -G. P. Singhडब्ल्यू० जे० मैकब्राइड -W. J. McBride

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ हीन-भाव का सामना नहीं किया जा सकता | लेकिन साहस और आत्म- निर्भरता ही वे गुण हैं जिनकी बिगड़े हुए बालक को कभी शिक्षा दी ही नहीं जाती । बचपन से ही उसे मनमानी करने की आदत होती है। जब तक उसकी प्रत्येक इच्छा की पूर्ति होती रही है, अपने घर में वह बादशाह की तरह रहता आया है तथा कभी किसी प्रकार की बाधा, विरोध, कठिनाई या अकेलेपन का अलु- भव नहीं किया है। नतीजा यंह होता है कि जब ये कठिनाइयाँ ओर चुनौतियाँ उसके सामने आती हैं, तो इनका सामना करने की भावना का उसमें सवेथा अभाव होता है। दो उदाहरण इस सत्य की व्याख्या के लिए काफ़ी होंगे। पहला है परिवार में दूसरे बच्चे का पैदा होना । एक एेसे घर मे, जहाँ अब तक पहले बच्चे का ही लाड-प्यार होता रहा है, दूसरे बच्चे का आगमन मनोवेज्ञानिक खतरों से भरा होता है। यदि . पहले बच्चे को नवागन्तुक शिशु के स्वागत के लिए सतकेता से तैयार न किया जाय तो इस नई घटना से उसके दिमाग़ पर धक्का लगता है। उसको अब तक विश्वास करना सिखाया गया था कि उस घर का सर्वेस्व वही है, परन्तु एकाएक उसका एक एेसे नये प्रतिदन्द्री से सामना होता है, जो उसकी गंदी छीन लेने का दावा ही नहीं करता, वरन्‌ उस पर बेठ भी जाता है। धीरे-धीरे उसे अनुभव होने लगता है कि अब उसकी स्थिति अधीनता की है, वह अपनी गद्दी पर से उतार दिया गया हैं। पहले बच्चे को पता नहीं कि इस नई परिस्थिति मेँ वह क्या




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