हिंदी कविता भाग 1 | Hindi-kavita, 1

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Hindi-kavita, 1 by पयस्विनी-Payswini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) अचल जड़ित तारक-शशि-रवि, गिरि-आसीना, कला प्रवीना के मोहक नूपुर मग पद्‌ पर। जन-मन-तन-भू चिर संचित सुख, वार-वार इन मृदु चस्णो पर। सुखद कल्पना सिक्त नयन-दल, मोहित होत्ता जल-थल प्रति पल, स्नेह-षृष्टि पाने चितवन की दोड़ अरे गिर उन चरणों पर, उल्ल चित कर कूप व्याधि मय, उस बीणा में शाश्वत स्वर-लय, करने दौड छोड कटक भय, बार-बार जीवन चरणों पर, शत-शत सुख, शत्त-सहस प्रलोभन, देख नहीं तत्समाकार बन, वार वार जीवन चरणों पर, जन-तन-मन-भू-चिर सचित सुख ! सान्दर्यन-प्रमा, रवि की दीत प्रभा, देव - कन्या कबिता के मथुमय देश म ग्रवेश परत ही विपत्ति “विधुय मुसकानँ आंसू बहाने लंगी-- अय विपत्ति-विधुरा मुसकान | मधुर नंदन-*तरु स्थित ओस ! निरखती हुई यौवन,यौवन कान्ति, समुत्पन्नित जीवन की भूल ।




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