संगीतज्ञ कवियों की हिंदी रचनाएँ | Sangitagya Kaviyon Ki Hindi Rachnayen

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Sangitagya Kaviyon Ki Hindi Rachnayen by नर्मेदेश्वर चतुर्वेदी -Narmdeshwar Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० অধীন कवियों की हिंदी रचनाएँ दोय प्न के मनोरंजन के साधनों पर प्रकाश डालते हुए जो कहा है वह इस গলা ন দুল है। वे लिखते हैं-- 7), 1 + ८५९ (८ 0 9ए 200 525८४ 0 ल 26600008 ग्रह: तो पाप হালে চা] নাত) [2652] হন 25 हल গত की টকা 22005 00672060095 05065551025 ২৫11)2 पात्‌, फटाठ तकदक्वृष ০0১ 0৩005 तत्प, काक €^; ,{. ¬. 3], [पाल वादव [ও 13, 31) 0 [एल 0 2802 চাহে १4६1; ६ 0. তেন 18070701250 20. 500025615759 (५, 32, 4}, 2 22 তত 9£ 5৩0) 55 222 [সি 155 +]. मांडकि शिक्षा के “सत्त स्वरस्तु गीयन्त सामभिः सामनैवुध्धेःः एवं नांगेय शिक्षा क यः सामगाना प्रथमः सवेखोमध्यमः स्वरः । यो हितीयः स गांधारः तृतीयः ऋषभः स्मृतः | चतुथ पडज इत्याह निषादः पंचमो भवेत । षष्टतु भेवतो ज्ञयः सप्तमः षंचमः स्तः से भी इसको श्रच्छी तरह पुष्टि दो जाती है | हाँ, यह अवश्य है कि उस युग में इन सात स्वरों के ये नाम नहीं थे | तत्कालीन साहित्य में मिंले क्रष्ठा, प्रथम, द्वितीया, तृतंया, चतुर्था, मंद्र और अतिस्वर को संगातीचार्यों ने आज के सांत स्वगे के समानांवर रखने का प्रयास क्रिया है, जो इ प्रकार ईै-- रध्य... त বান... ययम अपम, ..... द्वितीया कध ক पलक 2 अनक = + ৮ পি ध्म ~ পাটি খাপ = न # प मिट १८२, 0226 77




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