सप्तगिरि | Sapthagiri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.04 MB
कुल पष्ठ :
44
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रासठीला की प्रतीकात बल्लभाचायं जी के अनुसार परत्रह्म कृष्ण के विलास की इच्छा का हो नाम लीला है। लोला का एक मात्र प्रयोजन लोलानद है । सृष्टि और प्रलय भी भगवान् की लोलाएं है । परब्रह्मा कृष्ण गोलोक में नित्य एक रस आनंद में मग्त रहते हे । वहाँ नित्य बुदावन नित्य यमुना नित्य गोपी और नित्य विहार का आनंद होता है। जब उन्हे एक से अनेक होने को इच्छा होती है तब समग्र चराचर सृष्टि उनके अपार रूप से प्रकट होती है। उस समय गोलोक ब्रज में पृथ्वी पर उतर आता है और कृष्ण गोपागनाओं के साथ ब्रज की आनद - केलि में मग्न दिखाई देते हूं। इस प्रकार वल्लभ के अनुसार ब्रज की कृष्ण लीलायें परब्रह्म कृष्ण की नित्य गोलोक - घाम की लीलाओं की प्रतिरूप मात्र है । रासलोला कृष्ण साधघुय॑ लीलाओ के अंतगंत आती है । यह कृष्ण की लीलाओ में अत्यन्त प्रमुख है । सुर ने सुरसागर के ददमस्कघ में इसका अत्यन्त विस्तार के साथ वर्णन किया है दारद् की पूर्णिमा की रात थी। चॉदनों छिंटक रही थी । यमुना का पुलिन रसमणीक था। त्रिविघ पवन बहू रहा था । बुदावन में नाना प्रकार के पुष्प दिकसित्त थ। ऐसो सुरम्य प्रकृति को देखकर कृष्ण ने समस्त गोपियों के नाम लेते हुए वेणनाद किया । इससे गोपियों अत्यन्त व्याकुल हुईं । उनमें कृष्ण से मिलने की उत्कठा तीन्र होने लगी और वे कुल - मर्यादा संकोच तथा लोक - लज्जा छोड़कर कृष्ण से मिलने केलिए भादो के जल - प्रवाह को भाँति चल निकली । कृष्ण चोर - हरण - लोला के द्वारा गोपियों के संकोच लोक - लज्जा तथा कुल - मर्यादा का निवारण कर चुके थे जिसका रासलीला की स्थिति तक पहुंचते - पहुंचते अभाव दिखाई पड़ता है। फिर भी कृष्ण ने यह परीक्षा लेनी चाही कि उनमें अभी सकोच लोक - लज्जा तथा कुल - सर्यादा शेष है कि नहीं । इसलिए उन्होंने उनको वेद -माग॑ का उपदेदा देकर भपने - अपने घर चले जाने की सलाह दी। किन्तु गोपियों ने उनकी बातें नहीं मानी । उन्होंने कृष्ण को ही अपना सवस्व बताया । गोपियों को परीक्षा में उत्तीणं पाकर कृष्ण ने चीर - हरण लीला के समय दिये हुए आश्वासन के अनुसार रास - लीला का आरम्भ किया। कृष्ण रास - मण्डली के मध्य में थे। राधा उनके वास - भाग में थी । गोपियाँ उनके चारों ओर थीं । उनको अष्ट नायिकायें आठ दिशाओं में दोभा पाती थीं। रास संडली के बोच राघा - कृष्ण ऐसे अभिन्न थे मानों वे बिजलो और बादल हो या दोनो मिलकर एकरूप हो गये हो। गोपियाँ जितनी थीं उतने हो रूप घरकर कृष्ण उनके साथ नाचने लगे। गोपियों को नाट्य - मुद्रा के अनुरूप हो कृष्ण नृत्य - भंगिमा घारण करते थे । रास- सुख से गोपियो का गव बढ़ गया। कृष्ण राघा को लेकर अदृश्य हो गये। तब राधा के सन सें गव हो गया कि में कृष्ण के प्रेस की एक मात्र अधिकारिणी हूं । तब कृष्ण राघा को भी छोड़कर अदृश्य हो गये। सब गोपियाँ कृष्ण के विरह से अत्यन्त होकर उनको ढूढ़ने लगीं। कृष्ण के वियोग से गोपियो को जो दु ख हुआ उससे उनका गे गल गया । इसे जानकर और गोपियों के प्रेम को पहुचानकर कृष्ण प्रकट हुए। उन्होंने गोपियो से सिलकर उन्हें आनंद प्रदान किधा
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