वैदिक साहित्य में रूद्र | Vadik Sahitya Me Rudra

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Vadik Sahitya Me Rudra by श्रीमती उमारानी त्रिवेदी - smt. Umarani Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रु 5 डट टु-पडटटटसटटटस्ट 5-5 2252252वदक साहित्य में उग्र टिटट शाला नलट-अर टला ब्न् कि क् थे महतो के जनक है | इन्हीने ही मस्ती को पृष्शिनि के उज्जजल पयो धर से उत्पन्न किया था । यहाँ यह तथ्य द्रष्टव्य है लि जहाँ स्ट्र को महतो का पिता कहकर उनके साथ इनके अभधिननता का वर्णन किया गया है वहीं मश्तो के कृत्यों के साथ स्ट्र की किसी भी प्रकार सम्बद्धता से इन्कार किया गया है 1 ऋग्वेद में स्थ्र के युद्ध के आयुधो का भी वर्णन शमिलता है । एक बार इन्हें अपने हाथ मं वज़ धारण करते दूध कहा गया हर 1 आकाशें में प्राक्षिप्त इनका चिधुद शर- पृषथथिवी को पार करता हे । साधारणतया इन्हें एक धनुष और ऐसे वाणों से सुसीज्ज्त बताया गया है जौ शॉक्त- प शाली और शी ्रंगामी है 1 इन्हें कृशानु तथा धनूर्वरों के साथ आवाहन 5 किया गया है | शऋखेद मैं वॉर्णत स्ट्र के धनुर्वर होने की कल्पना तथा / 3७४ रद छिट्दे झु & नॉकछु ०१ इन्द्र की एक रथारूढठ धनुर्थर होने की कल्पना में साम्य प्रतीत होता है 1 6 सम सर्प से देखे पर इन्द्र का यह वर्णन स्ट्रपरक ही प्रतीत होता है 1 | शूं0 1 114 6-9 तथा 2+ 542 लि 2 ऋ0 2 उ5 5 छु ऋ० 7 46 5 2४ ऋ0 2१ उड०10-11 श्रू0 गा | | ऋू0 10 125 9 और 46९ ठ् ऋ0० |10 64९8




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