चिद्विलास | Chidvilaas

Chidvilaas by कार्ल क्लिंटन वेन डोरेन - Carl Clinton Van Doren

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रू उनसे निवेदन किया कि मेरा दशनके सम्बन्ध एक स्वतन्त्र पुस्तक लिखनेका विचार है | उन्होंने कृपा करके मुझको इस प्रयासके लिए, प्रोत्साहित किया इसको छा वर्ष हो गये | अब तक उस विचारकों कार्य्यमें परिणत करनेका अवसर नहीं मिलता थां । त्रिटिशि सरकारकी कपासे अब समय मिला है । पिछले तीन वर्षोमें दो वर्ष और चार महीने कारावासमें बीते हैं | अभी और दिन इसी प्रकार जायेंगे । भारतकी राजनीतिक परिस्थिति पर इससे अच्छी और क्या टिप्पणी हो सकती है कि दर्दनके सम्बन्धमें अध्ययन और मनन करने तथा पुस्तक लिखनेका अवकादा बन्दीयहमें ही मिलता है । दर्दानका विषय पुराना है, समस्याएँ पुरानी हैं, परन्तु आज इन समस्याओंने नया रूप घारण किया है । एक महासमरके घाव सूखने न पाये थे कि दूसरा छिड़ गया । युद्धकी भीषणता इतनी बढ़ गयी है कि यदि ऐसे ही एकाध संग्राम और हुए तो सम्यताका नाम मिट जायगा और जहाँ जनसड्ञल नगर बसे हैं. वहाँ द्वापदाकीर्ण जड़ल देख पड़ेंगे । मनुष्यत्े प्रकृतिपर विजय पायी परन्तु धर्म्मबुद्धिको विकसित करना भूछ गया । परिणाम यह हुआ कि वह अपने ज्ञानको अपने संहारका साधन बना बैठा है । विज्ञानकी उन्नतिने यह सम्भव बना दिया है कि प्रत्येक मनुष्य सुखसे रह सके परन्तु जितना दैन्य, दारिद्रय और दुःख आज हैं उतना स्यात्‌ ही कभी रहा होगा ; यन्त्रॉंके द्वारा थोड़े संमयमें बहुत काम हो जाता है परन्ठु किसीके पास अवकाश देख नहीं पड़ता और जिसके पास अवकाश है वह. उसका उपयोग नहीं जानता ; मनुष्य एक दसरेके जिंतने निकट आज हो सकते हैं उतना कभी पहले सम्भव नहीं था परन्तु जितना करुह, द्वेघ, पार्थक्य, शोषण आज हो रहा है उतना पहले




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