रोहतासमठ भाग- १ | Rohtasamath Bhag - 1

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Rohtasamath Bhag - 1  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रू थी पहिला भाग से लड़ रहा था जो उसकी लड़की को ले जाना चाहता था । मगर यह केसे सम्भव है यह मेरी समभक पे कुछ न भाया । मगर भाप कुछ सोच कते हों तो बताइए 1 मया० । यो तो में बहुत कुछ सोच समभक रहा हू सगर अभी तुम्हें कुछ बताऊंगा नही, तुम कहो भागे पया हुमा ह घोपाल० । हम लोगो की कोशिश से किसी तरह वह ठाध होश में आया सगर उठके वठ्ते ही पहिली निगाह उसने अपने कोले की तरफ डालो गौर तब इघर उधर कुछ तलाश कर जोर से चीख उठा । मै ने पूछा, “चया साथला है सहात्माजी ?”” ओर बहु घबराहुठ भरी आवाज से बोला, “क्या तुम लोगों ने वह डिव्वा कही रक्खा है जिसमें तिलिस्मी किताब थी ?”” हसारे “चही” कहने पर उसने अपनों लडकी से वहीं सवाल किया यौर उससे भी इनकार का जवाब सुन साथे पर जार से हाथ मार बोल ठा, “आखिर वही हुआ जिसका सुकते डर था ! दुश्मन वह किताब ले गया भीर अब न केवल वह तिलिस्म ही बरसों तक बिना टूटा रह जायग। चल्कि भीर भी न जाने कीन कौन सी आफतें तुम्हे झेलनी पढ़ें !”” वहू साधू उस किताब के जाने से इस कदम गमगीन भर परेशान हुआ कि आखिर रहा न गया मीर मैंने पूछा, “उस किताब से कौन सी अद्भुत बात थी गौर उसके जाने से आप दयों इतवा घबड़ा रहे है?” समंगर उसने कोई जवाब च दिया बल्कि मुझ्प्ते कहने लगा “राजकुमार, उस किताब का यकायक ठीक ऐसे सौके पर गायब होना जब कि उससे काम लेने का चक्त था गया था, एक बहुत्त बुरा ग्रसगुव है ! अब शायद तुम बरसों तक वह काम पूरा कर न पाओंगे जिसे तुमको करना है, बल्कि यह कहना चाहिये कि जिसके लिये तुम्हारा जर््म हुश्ा है, और सुके तो ऐसा जान पढ़ता है कि तुम पर और तुम्हारे खानदान पर कोई बड़ी मारी मसीबत आने वाली है । अब तुम यहां एक पल मर भी न ठहरों और तुरत भपनी राजधानी को लोट जाओ ।”” मैने बहुत कुछ पूछा और बार




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