हिंदी नाट्य कला | Hindi Natya Kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1121.31 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रूपक का विकास श्भ्रू
होते थे । उन देवताशओं में से कुछ तो कल्पित होते थे तौर कुछ
ऐसे वीर-पूवेज होते थे, जिनमें किसी देवता की कल्पना कर ल्ली
जाती थी । ऐसी दशा में उन देवताओं के जीवन में से रूपक की
यथेष्ट सामग्री निकल आती थी । इसी प्रकार के उत्सव ओर रूपक
बरमा ओर जापान आदि में भी हुआ करते थे । फसल हो चुकने
पर तो ऐसे उत्सव ओर रूपक होते ही थे, पर कहीं कहीं फसल
बोने के समय भी इसी प्रकार के उत्सव ओर रूपक हुआ करते
थे। इन उत्सवों पर देवताओं से इस बात की प्राथना की जाती
थी कि खेतों में यथेष्ट धन-धान्य उत्पन्न हो । भारत में तो झब तक
फसलों के सम्बन्ध में अनेक प्रकार के पूजन ओर उत्सव आदि
प्रचलित हैं, जिनमें से होली का त्योहार मुख्य है। यह त्योहार
गेहूँ आदि की फसल हो जाने पर होता है ओर उसी से सम्बन्ध
रखता है । झब भी होली के झवसर पर इस देश में नृत्य, गीत
श्ादि के साथ साथ स्वाँग निकलते हैं, जो वास्तव में रूपक के पूर्व
रूप ही हैं ! ययपि आजकल यह उत्सव अश्लीलता के संयोग से
बिलकुल श्रष्ट हो गया है, पर इससे हमारे कथन की पुष्टि में कोई
जाघा नहीं पड़ती । (४
वीर-पूजा-प्राचीन काल में जिसप्रकार धन-धान्य आदि के लिये
पूजन दोता था, उसी प्रकार पूर्वेजों मोर बड़े-बड़े ऐतिहासिक
पुरुषों का भी पूजन' होता था । उन पूबेजों-आओर ऐतिहासिक पुरुषों
के उपकत्त. में. बड़े-बड़े उत्सव भी होते थे, जिनमें इन उत्सवों में
घन-धघाम्य की वृद्धि के लिये उनसें प्राथना की जाती थी, अथवा
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