अष्टछाप की वार्ता | Astchap Ki Varta

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Astchap Ki Varta by कंठमणि शास्त्री - Kanthmani Sastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे है। इनक विंघय में कहावत प्रसिद्ध है झोर सब गढ़िया मद्दास जड़िया । ७ छीतस्वामी जन्न--संब्रत १५५७२ अननुमानत। मथुरा । माता पिता घ्ादि-इनके मातापिता के विषय में विशेष बत्ताग्त शात नहीं है । ये चतुर्वेदी ब्राह्मण शोर बीरबल के पुरोदित थे । थे गूदस्थी थे पेसा वार्ता से अनुमान दोता है । शिक्षा--सस्प्रदाय में ्राने से पूष थे लम्पठ स्वभाव के पुरुष थे । ये शरण में झाने से पदले काव्य-रचना भा किया करते थे । गोस्वामी विट्लनाथाजी के चमत्कार थे उनके सि् की वुन्ति गुंडापने से दट कर सदाचयार की छोर लग गई झौर बाद में कीतंन-सेवा में रद्दकर श्रष्टछाप में इन्होंने स्थान पाया । सेप्रदायमें प्रबेश--सं० १४६९ में शुसाइंजी की शरण झाये सम्प्रदाय करपदरस ऐ ४५ निषास-रिंरिराज पूंछरी स्थान रूलु--रेनके प्रायः २०० पद मिलते है। इनकी भाषा सरल आर स्पष्ट है । कुछ पद प्रकाशित हैं । अत्तिम समझ सश्भत्‌ १६४२ पीगिरिघरलाल के १२० बचनासुत के अनुसार भीगुसाईजी के गोकोकबास के दुष्खद समाचार को सुन कर छोतस्वामी को




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