हरी बांसुरी सुनहरी टेर | Hari Bansuree Sunahree Ter
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.65 MB
कुल पष्ठ :
147
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रेण॒ की साड़ी पहन, चल तृहिन का
मुकुट रख, तुम खोलती हो मुकुल को !
मेघ-से उन्माद ! तुम स्वर्गीय हो,
कुमुद कर सें जन्म पा, तुम मधुप के
गीत पीकर मत्त रहते हो. सदा,
मौन, चिर शअ्रनिमेष, निर्जेन पुष्प-से !
प्राह :-रससुखे आँसुग्नों की कल्पना ,
कोहरे सी मुक्त नभ में भूम कर,
दग्ध उर का भार हर, तूम जलद सी
बरसती हो स्वच्छ हलकी दांति में !
अ्रश्नु,--हैं श्रनमोल मोती दृष्टि के !
नयन के नादान शिशु ! इस विश्व में
श्राँखस हैं सौन्दयं जितना. देखतीं
प्रतनू : तुम उससे मनोरम हो कहीं !
ग्रश्न ! दिल की गूढ़ कविता के सरल
श्री' सलोने भाव! माला की तरह
विकल पल में पलक जपते हैं तुम्हें ;
तुम हृदय के घाव धोते हो. सदा !
वेदने ! तुम विश्व की कृश दृष्टि हो ,
तुम महा संगीत, नीरव हास हो,
है तुम्हारा हृदय माखन का बना,
भाँसुध्रों का खेल भाता है. तुम्हें !
हरी बाँसुरी सुनहरी टेर ६७
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