धर्म तत्त्व | Dharm Tattv

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Dharm Tattv by शिवशंकर भार्गव - Shivshankar Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छिदान्वेषण श्ौर विश्वव्यापी प्रेम १९ झै। श्पने मित्र की छोटी मोटी किसी विशेष बात में त्रटियों को देखते ही उसके सद्गुणों पर पानी फेर देने की कसी प्रवल प्रदृत्ति हमारे हृदय में जार हो उठती है । जल-गणित विधा में किसी पिरड पर दो श्रकार के दबाव माने जाते है, एक सम्पूर्ण दबाव और दूसरा लब्घ दवाव। किसी पिंड पर सम्पूर्ण दबाव असीम श्र लब्ध दवाव शून्य हो सकता है । भारत में बहु-- संख्यक शक्तियों का कोई लब्ध दवाव शप्रकट नहीं होता, क्योंकि वे एक दूसरे के चिरुद्ध खद़ी होने से श्रकारथ हो जाती हैं । क्या यह स्थिति करुणा-जनक नहीं है ? इसका कारण क्या है ? यही कि हरएक दल श्पने पढ़ौसी के दीषों पर ही झ्पना ध्यान केन्द्रित करता है। इस” श्रकार मेल कभी नहीं हो सकता । संदेहात्मक आधार पर दोपारोपण की श्रदनति ही एक दुष्ट शक्ति के रूप में हमररे वीच आपएति जनक योग्य चरिन्रवाले मनुष्यों को पैदा करने क्गती है । “किसी को चोर कहो श्औौर चह चोरी करने लगेगा” यह एक-निर्विवाद स्वत:-सिद्ध सच्चाई है। क्या हमारे शाधार सें कोई सामान्य सिद्धान्त नहीं है? क्या हसारे पडौसियों में कोई प्रशंसनीय गुण नहीं होते ? क्या भारत के विभिन्न दुर्लों सें एकता का कोई बन्धन नहीं है? शुद्धता या श्रथुद्धता के नाम पर हसें ईश्वर की खुफ़िया पुलिस के स्वयं-चिवाचित सटस्यों का अभिनय 7 करके किसी ऐसे मनुष्य के व्यक्तिगत चरित्र में माकने का क्या अधिकार है जिसका सार्वजनिक चरित्र देश के लिए उपयोगी सिद्ध हो रहा है ?' व्यक्तिगत झआाचरण का श्रश्न तो. उसके श्रोर परमेश्वर के वीच का श्रश्न है । हम उसमें हस्तक्षेप करने वाले कौन है ? दूसरों के शुण-- “दोषों पर विचार करने सें हमारी शक्ति का जितना श्रपव्यय होता है, चह हमें झपने श्रादर्शों के अनुसार जीवन-निर्वाद करने में लगाना- चादिए । क्या बाहरी दवाव के द्वारा सन्नुप्य एक पग भी सदाचार के




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