शंखध्वनी | Shnkh Dhvni

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Shnkh Dhvni by श्री सुमित्रानन्दन पंत - Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र् सवध्वनि देवोत्थान जवगती में हम मानव में दानव को करते आए अभिषेरित गहन सनोवज्ञानिक स्तर पर पद... प्रवत्तियां को जन जन वे. जीवन मन मे करतें थाए.. स्थापित जगले कई दब सभयत बीतेंगे अब देवा में फिर मानव अतर को करने में भडित-- मानगीय जीयन को भावी परा. स्वग में फरने. पूण... प्रतिरिठित कितना काय अभी करना ह-- सोच सोच पर विस्मय से अभिभत बभी हो उठता अतर सुदर याह्म प्रकृति जग --- इससे भी सदरतर मानव का. अतजग-- सत्म विभय से भास्वर .




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