हिन्दी साहित्य के दार्शनिक आधार | Hindi Sahitya Ke Darshnik Adhar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand), सारित्वश्रौर रशन . . (ट)
हमीं ने दिया शति संदेश सुखी होते देकर आनन्द |
विजय केवल लोहे की नहीं घधम की रही घरा पर धूम ॥
भिज्ञ होकर रहते सम्राट दया दिखल्ाते घर-घर घूम
>< कक... ० - ~: >८
किसी. ,का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पाक्ना यहीं ।
. हमारी जन्म-भूमि थी यहीं कहीं से हम आए थे नहीं )।
तथा देश-प्रेम की पुष्टि- क
जिएँ तो सदा इसी के लिए यही अभिमान रहे यह हु |
. निछावर करद हम स्वेस्व हमारा प्यारा भारतवंष ॥
इस युग में राष्ट्रीय भावना का साहित्य केवल पद्य ही में नहीं: लिखा
गया बल्कि गद्य में भी । नाटकों आदि से उपन्यासों द्वारा जनता को
राष्रीय भावना से परिपूणं साहित्य मिला । सुन्शी प्रेमचन्द के. उप-
न्यासों ने जीवन के हर क्षेत्र में ( बिशेषत: ग्रामीण क्षेत्रों की. सम-
स्याम पर दृष्टि डाली >) सुधारक का कायं किया । प्रसाद जी ने अपने
नाटकों मे मारत के स्वणे-युग की संस्कृति के द्वारा जनता को चेताया
था कि हम क्या थे श्र अब क्या हैं । इसी प्रकार के साहित्य से
मानव-सात्र में से दल्तगत भावना को निकाल कर मानवताबाद को
लाया गया । आगे चल्लकर इस प्रकार के साहित्य ने राष्ट्र के गौरव
को बहुत ऊंचा किया ।
हिन्दी के राष्टरू-कवि श्रो मैथिलीशरणजी गुप्त ने अपनी कवि-
ताझओं द्वारा प्राचीन भारतवष की. सोइ हुई संस्कृति को जगाया ।
साकेत”, जयद्रथ-बध झादि काव्यों में तो उन्होंने प्राचीन सभ्यता तथा
तत्कालीन श्रेष्ठ तत्वों को सखा है । गाँधीवाद से -अनुधारित
साहित्य के रचयिताओं में अग्रणी श्राप ही है | स्वटन्त्रता-दिवस ८ १५
अगस्त, १६४७ ) के पुख्य दिवश्च प॒र राष्ट्रीय ध्वजा ॐे अभिनन्दन में
जो कविता आपने. लिखी बह स्पृहणीय है । आपके माई श्री सियाराम-
हे जी गुप्त ने अह्सि-नीति की व्याख्या बड़े ही मसार्भिक ढंग से
की हे।
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