हिन्दी साहित्य के दार्शनिक आधार | Hindi Sahitya Ke Darshnik Adhar

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Hindi Sahitya Ke Darshnik Adhar  by पद्मचंद अग्रवाल - Padmchand Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, सारित्वश्रौर रशन . . (ट) हमीं ने दिया शति संदेश सुखी होते देकर आनन्द | विजय केवल लोहे की नहीं घधम की रही घरा पर धूम ॥ भिज्ञ होकर रहते सम्राट दया दिखल्ाते घर-घर घूम >< कक... ० - ~: >८ किसी. ,का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पाक्ना यहीं । . हमारी जन्म-भूमि थी यहीं कहीं से हम आए थे नहीं )। तथा देश-प्रेम की पुष्टि- क जिएँ तो सदा इसी के लिए यही अभिमान रहे यह हु | . निछावर करद हम स्वेस्व हमारा प्यारा भारतवंष ॥ इस युग में राष्ट्रीय भावना का साहित्य केवल पद्य ही में नहीं: लिखा गया बल्कि गद्य में भी । नाटकों आदि से उपन्यासों द्वारा जनता को राष्रीय भावना से परिपूणं साहित्य मिला । सुन्शी प्रेमचन्द के. उप- न्यासों ने जीवन के हर क्षेत्र में ( बिशेषत: ग्रामीण क्षेत्रों की. सम- स्याम पर दृष्टि डाली >) सुधारक का कायं किया । प्रसाद जी ने अपने नाटकों मे मारत के स्वणे-युग की संस्कृति के द्वारा जनता को चेताया था कि हम क्‍या थे श्र अब क्या हैं । इसी प्रकार के साहित्य से मानव-सात्र में से दल्तगत भावना को निकाल कर मानवताबाद को लाया गया । आगे चल्लकर इस प्रकार के साहित्य ने राष्ट्र के गौरव को बहुत ऊंचा किया । हिन्दी के राष्टरू-कवि श्रो मैथिलीशरणजी गुप्त ने अपनी कवि- ताझओं द्वारा प्राचीन भारतवष की. सोइ हुई संस्कृति को जगाया । साकेत”, जयद्रथ-बध झादि काव्यों में तो उन्होंने प्राचीन सभ्यता तथा तत्कालीन श्रेष्ठ तत्वों को सखा है । गाँधीवाद से -अनुधारित साहित्य के रचयिताओं में अग्रणी श्राप ही है | स्वटन्त्रता-दिवस ८ १५ अगस्त, १६४७ ) के पुख्य दिवश्च प॒र राष्ट्रीय ध्वजा ॐे अभिनन्दन में जो कविता आपने. लिखी बह स्पृहणीय है । आपके माई श्री सियाराम- हे जी गुप्त ने अह्सि-नीति की व्याख्या बड़े ही मसार्भिक ढंग से की हे।




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