विचार और विवेचन | Vichar Aur Vivechan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय और पाश्वं कीव्यश्शसि १९.
उरिकों ने दस' प्रश्न कों 'अरत्यरत' गं मीरता-पूर्वक अ्रहण करें लिया, और '
वहीं से पाश्चात्य काव्य-शार्सत्र करा क्रंम-बेद्ध विकास आरंभ हो गया ।
रष्टकीण ं
भारतीय और परिचसी .काव्य-शास्त्रों में एक आधारभूत समानता .
यह भिलती है कि आरंभ से ही इन दोनों का दृष्टिकोण रेहिक
रहा है। भाएतवष मे जीवन, के सभी क्षेत्रों पर अध्यात्म, का
इतना गहरा प्रभाव रहा हे कि यह, कल्पना सहल ही वेध जात्ती, है
कि वह काब्य-जेसे गंभीर जीवन-तत््त्र का भी आध्यात्मिक व्याख्यानं
ही करेगा । परन्तु हम देखते हैं कि आरंभ से ही उसने काव्य को
लोकोत्तर कहते हुए भी आध्यात्सिक नहीं.'माना है । पश्चिम मे, बल्कि,
ध्रारंभ में प्लेटो आध्यात्मिक आनन्द और काव्यानन्द के बीच का श्रन्तर
स्स्पष्ट अजु्तन नहीं कर पाया, अपर उसने दोनों के-बीच में काफी भ्रान्ति
सेदा कर दी । पर तु बाद में, वहाँ भो इस च्टि का शीघ्र हीसंशोधन हो
“गया और निर््रान्त खूप से काय्य को श्रध्यास्म से पृथक रखा गया ।
ही
ष
रागे चलकर दोनों मे एक विशेष अन्तर दिखाई देने लगा--वह'
“यह कि पश्चिम में काव्य की गणना कला के अन्तर्गत की जाने लगी;
परन्तु इधर भारतीय दृष्टि ने कला श्रौर काञ्य को सदैव प्रथक् रखा ।'
कला को हमारे यद्य हीनतर विख माना गया--उसके सजन से शिक्षा
आर उसके प्रयोजन में मनोरन्जन का प्राधान्य रहा--इसके विपरीत
-काव्य क क्षु दिव्य-प्रेरणण श्रौर गंभीर परिष्कृत झानन्द को श्रनिवायं'
माना गया । उधर पश्चिम में काव्य का श्रन्तर्भावर पंचकलाश्नो सें करिया
-गया।
लेकिन वहाँ कला का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा साना गया है--
'उसके लिए मानसिकता अनिवायं सानी गई है श्र उसी के श्राधार पर
'कलाओं का कोटि-क्रम स्थिर किया गया है । काव्य को वहाँ श्रोऽतम
कला मानते हुए उसका स्तर अत्यन्त ऊँच्य रखा गया है । इस प्रकार
कला के अन्तगत गणना करके विदेशी काव्य-शास्त्र ने साहित्य के
गौरव की कोई नि नहींकी ग्सा कि शाचाय शुक्ल ने श्रपने एक,
निबन्ध से संकेत किया है । वास्तव मे मारत श्रौर परिचिमके आद्यं
न्नेकलाकाजोस्दरूप स्थिर किया उसमे ही अन्तर है । भारत ने जहाँ
चकला का सम्बन्ध स्थूल शिरूप-गुण श्रौर मनोरन्जन से मानते हुए उसको
User Reviews
No Reviews | Add Yours...