शास्त्रसागर समुच्चय | Shastrasaar Samuchchay

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Shastrasaar Samuchchay  by आचार्य बेश भूषण जी सुनिम्हाराज - Aachary beshbhushan jee Sunumaharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्श करना कितना श्रम-साध्य कठिन कार्य है इसको उुक्त योगी हो समझ सकते हैं। फिर भी ४२४ पृष्ठ प्रमाण इस टीका का भनुवाद महाराज ने स्वस्प समय में कर ही डाला । इसके साथ हो वे महान श्रदूसुत प्रत्य सुवलय के अनुवाद भौर सम्पादन में भी पर्गाप्त योग देते रहे । इस तरह उनके कठिन श्रम को विद्वान हो भ्रांक सकते हैं । इस प्रत्य के सम्पादन में मेंने भी कुछ योग दिया है । भ्रसाता वश तेत्र पीड़ा इन्फ्ल्यूनजा इलेष्म ज्वर तथा वायु पीड़ा-प्रस्त होने के कारण मुके लगभग डेढ़ मास तक विश्राम करना पड़ा ग्रत्थ का सम्पादन प्रकाशन उस समय भी चलता रहा श्रत उस भाग को मैं नहीं देख सका । ग्रत्य मूल प्रति उपलब्ध न होनें से संशोधन का कार्य मेरे लि एमी कठिन रहा । बहुत सी गायाएं तथा संस्कृत स्लोक लियपण्णात्ि गीम्म ज सार श्रादि प्रन्यों सै मिलान करके शुद्ध कर लिए गये जिन उद्धृत पद्चों के दिषय में मूल ग्रन्थ का पता न लग सका उनको ज्यों का त्यों रखदेना पड़ा अत विद्वान इस कठिनाई को हृष्टि में रखकर श्रुटियों के लिए क्षमा करें । ग्रन्थ इससे भी श्रधिक सुन्दर सम्पादित होता किन्तु प्रकाशकों की नियमित स्वल्प समय मैं ही प्रकाशित कर देने की प्रेरणा ने ग्रधिक-समय-साध्य कार्य स्वस्प समय में करने के कारण वैसा न होने दिया । श्रस्तु । --प्रजितकुमार शास्त्री सम्पादक जैन गजट एड ८ ।




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