लोकमान्य तिलक के स्वराज्य पर 12 व्याख्यान और जमानत का मुकद्दमा | Lokmanya Tilak ke Swarajya par 12 Vyakhyan aur Jamanat ka Mukadma

Lokmanya Tilakake  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) श्रशमे श्रन्तोात छराञ्य व्यत्रस्याके सन्वन्ध्मे सरकार भीर्‌ मुम कु. खास मत भद है। परन्तु इसी कारशसे मेरी बृत्ति अथवा मेरा कत्तेव्य सरकारके संबंध दुषित भाव व्यक्त करता है, ऐसा कहना बिलकुल दी अतमंजसता है । मेरा हेठु--अथवा मेरी इच्छा कभी ऐसी नहीं हुई थी । में इसी समय एक बार श्पष्टतया घोप्ित कर देता हूँ कि श्चायंलडके होमह्लरौकी तरह हमारे प्रयत्न वतमान शासनप्रणालीमें झवदयक सुधार करनेके लिये होंगे, न कि राज्यकों उलट देनेके लिये। मैं स्पष्ट कहता हूँ कि भारतवषक मिलन भिन ममेमे ज) अत्याचार हो रहे हैं उनसे मुके चिढ ह इतनाही नहीं किन्तु मेरा तो यह मत है कि ऐसे घणि मागोके अ्रवलवबनसे हमारे राजकीय उन्नतिका मार्ग श्र भी कष्टमय हों रहा है । व्यक्तिशः या सावेभनिक --किसी भी टष्टिते इस प्रकारके कृत्य दोपाई है श्र इस बातकों में पहले भी कई बार कह चुका हूँ । श्रग्रजी राज्यकी केवल सुघरी हुई शासनप्रयालीसे भारतकी भिन भिन्न नातिर्योका एकीकरण होकर इमं समय पाकर एक सयुक्त हिदी रण निर्भित्त हानेजी सम्भावना होनेसे लग नो यह कहते हैं कि अप्रेजी राज्यते लाभ हो रहा है बह उनका कहना ठीक है । स्वातन्राप्रिय बृटिश जातिकें सिवा यदि यहां किसी दूसरी जातिका शासन होता तो बह इस प्रकारका , राष्ट्रीय उदेश्य ध्यानेन स्खकर दपि स्पष्ट करतेमें हमारी मदद देता या नहीं इमे हमे शक्रा दे । डिन्दुस्तानके सबधर्म श्राप्या रखने वाले पुरुषाकों ये ओर इसी तरह के दुसेर लाभ पूर्णतया झवगत




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