ताओ उपनिषद् (तीसरा भाग) | Taao Upanishad (Part 3)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
566
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बहुत जगह फैल जाती है, तब उसका प्रभाव फीका हो जाता है, उसकी इन्टेन्सिटी
कम हो जाती है । लेकिन क्या सुन्दर है, पतला होंठ या मोटा होंठ ? समाज
सिखाएंगा कि क्या सुन्दर है ।
रूप भी हम देते हैं । नाम भी हम दे देते है, रूप भी हम देते है । विचार भी
हम देते ह । फिर व्यक्तित्व की पतं बनमी शुरू हो जाती है । आखिर में जब आप
अपने को पाते हैं, तब आपको खयाल भी नहीं होता है कि एक कोरापन लेकर
आप पैदा हुए थे, जो पीछे छिप गया है-बहुत-सी पत्तों में । वस्त्र इतने हो गए हैं
कि आपको अब अपने को खोजना कठिन है । और आप भी इन वस्त्रो के जोड
को ही अपनी आत्मा समझ कर जी लेते हैं ।
यहीं अधामिक आदमियों का लक्षण है । जो वस्त्रों को ही समझ लेता है कि
में हूं, वही आदमी अधारमिक है । जो वस्त्रों के भीतर उसको खोजता है, जो समस्त
सिखावन के पहले मौजूद था, और जब समस्त वस्त्रो को छीन लिया जाए, तब भी
मौजूद रहेगा, उस स्वभाव को खोजता है, वही व्यक्ति धार्मिक है ।
लाओत्मे कहता है, छोड़ो सिखाबन । जो-जो सीखा है उसे छोड़ दो तो तुम
स्वयं को जान सकोगे । लेकिन हम बड़े उलटे लोग डे । हमको स्वयं को भी
जानना हो तो हम उसे भी दूसरों से सीखने जाते है । सच तो यह है कि स्वयं को
खोना हो, तो दूसरे से सीखना अनिवारय है । और स्वयं को जानना हो, तो दूसरों
की समस्त शिक्षाओ को छोड देना जरूरी है ।
यदि जगत में कुछ भी जानना हो अपने को छोड़कर तो शिक्षा जरूरी है ।
और जगत में यदि स्वयं को जानना हों तो समस्त शिक्षा का त्याग जरूरी है ।
क्योकि जगत में कुछ और जानना हो तो बाहर जाना पड़ता है और स्वयं को
जानना हो तो भीतर आना पडता है । यात्राएं उलटी हैं । तो धर्म एक तरह की
अनलनिंग है; शिक्षा नही, एक तरह का शिक्षा-विसर्जन है, एक तरह का शिक्षा का
परित्याग है । जो भी सोखा है, सभी छोड बेना है । इसमें घर्म भी आ जाता है;
जो धघम्मे सीखा है, वह भी आ जाता है । जो शास्त्र सीखा है, वह भी आ जाता है ।
जो सिद्धान्त सीखा है, वह भी आ जाता है । जो भी सीखा है, सब कुछ आ जाता
है । इसलिए धमं परम त्याग हैं। धन को छोड़ना बहुत आसान है; लेकिन जो
सीखा है, उसे छोड़ना बहुत कठिन है । क्योकि धन हमारे ऊपर के दस्त्रों जैसा है;
लेकिन जो हमने सीखा है, बह हमारी चमड़ो बन गया है। उसे छोड़ना इतना
आसान नही है । क्योकि हम अपने सीखे हुए के जोड़ ही हे ।
एक आदमी से पूछें कि तुम कौन हो तो कहता है कि मैं डाक्टर हूं । दूसरे आदमी
से पूछो कि वह कौन है, वह कहता है कि में शिक्षक हू । फिर एक आदमी को पूछो
कि बह कौन है, वह कहता है, में अ हु, या ब हूं, या स हूं । और मौर से देखो तो वे
सब यह बता रहे हैं कि उन्होंने क्या-क्या गुड है । एक आदमी ने डाक्टरी सीखी है,
धामिन व्यक्ति अजनबी व्यकित है भ
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