लग्न चन्द्रिका | Lagna Chandrika

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Book Image : लग्न चन्द्रिका  - Lagna Chandrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लग्नचन्द्रिका । (६ अहोरात्र [के विकल्प को होरा कहते है, अहोरात्र शब्द मे प्रथमाक्षर अकार श्रौर अन्तिम अक्षर त्र का छोप करने से होरा शब्द माना है । पूर्व जन्म में कर्माजित सदसत्कलो से परिपाक को होरा प्रकट करता है, अहोरात्र शब्द से होरा शब्द निप्पत्त करने का भाव यह है कि समस्त फल ज्योतिष शास्त्र में लग्न पर निभर है भ्रौर लग्न समय से पहुचानी जाती है और समय भहोरात्र ( दिन रात्रि ) के मान को कहते है, मेषादि बारह राशि पूर्ण होने पर दिन रात्रि होता है । इसलिये भहोरात्र से होरा शब्द सिद्ध किया है । सदसत्फल के जानने के कारण ज्योतिष शासन मे प्रह विचार कहा गया है इसी कारण होगा मे तदर्थानुक्लता से सूर्य चन्द्र ( दिनकर, रात्रिकर ) ग्रह ही प्रधान माने गये है । “राशेरर्ध भवेद्वोरा-राशि के अधंदल को होरा कहते है। प्रत्येक राशि मे दो होरा होते है सम राशि दुष, कक कन्या, दुष्चिक, सकर, मीन-में प्रयम १४५ अश तक चन्द्रमा वा होरा होता है, तदनन्तर १६ अश से ३० अश तक सु्य॑ का होरा होता है और विपम, मेष, मिथुन, सिंह तुला, घन ओर कुम्भ राहियों में थम १५ अद्य तक का बाद १६ अंश से ३० अंग तक चन्द्रमा का होता है, प्रत्येक राशि तीस अश को होती ही है । शशिरविहोरा । विषमभमध्ये रविशशिनोः सा,, इति 0.




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