जैन धर्म क्या कहता है भाग - 5 | Jain Dharam Kya Kahata He Bhag 5
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
844 KB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जैन घने १९
उनका भी आादर कियां जाठा है। लगमछ दो हजार वर्षकी
आचार्य-परम्परामें जैन-आाचायोनि' विपुल साहित्यका निर्माण
किया है ।
अनदशन ति '
सन्मम संसारको, जगतुको अनादि-अनन्त माना
जाता है जिनी मानते हैं कि इस जगयुका बनानेवासा कोई
हीं। वे 'जिन' या. 'अटत'बो ही परमात्मा मानते हैं बौर महू
भी कि प्रत्येक आात्मा परमात्मा हो सकता है । ईश्वर नामकी
कोई ऐसी शक्ति नहीं है, यो सुष्टिया संचाठन परे. । छह दब्य-
शिद्वान्तें बनुसार सृष्टि थनादि-निधन है।
'अनेकांत
लैनदर्मनका सब ऊंचा सिद्धान्त है, बनेकान्त । 'अने-
कान्तिः कट्ते ह, एफ चीजरा यनेक धर्मात्मक होना । सिनन-मिष
दृष्टम जव हम देखने हैं, ठो एक ही चीज लनेक धर्मात्मक
दिखाई पड़ठी है। एक दृष्टिसे एक चीज संदु मानी जा सकती
है, दूलरी धष्टिसे वही असदू । , बनेकाठमें समस्त विरो
समन्वय हो जाता ह! ¢ पि ५
जैसे, देवदत्त विसीका बेटा है तो क्िंसीका वापर ।.किमीक्रा
भाई है तो किसीका मतीजा । किसीका मित्र है तो विसीका
चुप । एक ही देवदततके अनेक रूप हैं । , कोई उसे किसी ख्ये
देखता है,'कोई किसी स्पमें 1 स्विच कोर्ट एक, ही.स्य, ,
सही है, ऐसा कहना ठीक 1 र
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