स्वप्नलोक | Svapnlok
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न्ववपय ब्राह्मण में दु स्वप्न! को मिटाने के लिए अवामाग वनस्पति की पजा
करने का परामश दिया गया हु ३ अपददेद में भी कहां गया हू कि दुस्दप्त आते ही,
करवट वद कर् एक तिनेष मद्र का पाड कटना वादि ।
दुस्वनन दा प्रभाव दारमेके लिटि दिव्पु मक्त, अपने सुंह को श्वच्छ मर,
विष्णु सदद्लनाम' का पाठ वरते है। दिप्गु सहस्नाम में दिग्गु को दुस्वप्लनाशक
माना गया हू ।
नेदों में ग्यारह प्रकार के दुस्वप्तो को अपुभ और अपरातुन्युक्त माता गया
ह-( १} बा दाता बाला व्यक्ति जो हत्या बरने को तत्पर ही । (२) वराह!
{३१ स्वप्न देषने वारे -पक्ति पर पटो दई जग विस्र ( ४ } यदि स्वण्ददर्
सोना खा कर उसे कठा हुआ दिखाई पढ़ । ( ५+ ६ ) मदि स्वलदर्ती मधु या
बनड़ वो. जड़ साता दिलाई पढ़े। ( ७+८ ) यदि स्पप्नदर्यी किसी गाँव में गधों
या बाराहों वे साथ जाता दिलाई प्न! {९} यटि स्वप्नदर्गी किस काली गाय
सौर काले वछडे को दशिग को आर ह्क्ता हुआ टिखाई पड़े । ( १०+ ११ ) यदि
स्वप्नदर्षी लोमगा पोधा पहने या सुदय को माला पहुनाता हुआ हिसाई परे ।
प्राचीन भारतीय स्वप्न सिद्धान्त
दुस्वप्नों के आतिम रहस्यारमक तत्व को जानने के प्रयास में आदमी ज्या-ज्यी
अग्रसर हुआ है स्पॉजयों नयी पहुल्याँ सामने था बर उसे चुनौती देती रही है भाज
भा दुस्वप्ना के प्रयोजन सौर अथ के बारे में आदपी को जानवरों अपूण ही है ।
रश्गिन, स्वप्नो के कारम उत्पत्ति ओर विवासादि पर हमारे पुरणों ने यपेष्
छ्िवार सोर प्रयोए विये थे. बएरण उन वो स्वप्ल सम्द थी मा यताएँ शाय जत्ततात
हो नहीं, प्रयोगतिद्ध भी प्रतीत होनी हैं ।
प्राचीन भारतीय चिक मे अनुसार सुद्टि के आरम्भ में मद्तरप, महरार,
तमाशाओं एव मरसभूतों व सायन्साप ठीन गुण--सारििक, राजमिर और तामसिक-+
उत्पभ हुए । जोर उडी वे साथ उत्पन्न हुई तोन थवस्थाएँ--जाप्र स्व और
शुपुतति । जात और सुपुप्ति बे दाच का अदस्या स्वप्नस्य हु}
प्राचीन नारतोय स्वप्त सिद्ध उ की वारीक्या द1 तो समयन ही ये। यह भी
जानने थे थि यनेक स्वप्न जमन्ममावरोने छ्म्वायन रते भौर अनक सपना क
परम बई वर्षों तक चरूता है ।
मागसूबं में स्वप्त की ब्यारुस इस प्रवार वो गयी है. “जय व्यक्ति स्वच्छ
पवक सयवा सवमावत सुधि से चेमुधि तथा पेवनादस्या से अचवनावस्था में प्रवि्
होता है दो चना यौर अचेनना दी मिधिठावस्या में यद्धचवन स्विठि में पहला है)
र्दी स्वनपम्या है 1 इ सदस्य ये व्यनि यतसे सर वोर् मनद प्रदान पुत्रमा
में सनुगार मिरा में दृश्य रेसवा है, जिडें स्वप्त कदा जनाह्} पितप्रयान व्यक्ति
इरप्नस झट दम
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