हिंदी शोध तत्र की रूप रेखा | Hindi Shoudh Tantr Ki Rooprekha

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Hindi Shoudh Tantr Ki Rooprekha by मनमोहन सहगल - Manmohan Sahgal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झनुसन्वान[|7 सामग्री में पुरातन विद्वानों वी चेतना झाज भी बोलती हैं; उनपा एवे-एकश्रक्षरमे केवल भ्पने समय वा उद्धाटन बरता हूँ बल्कि रचयिता थी श्रात्मा यो प्रतिपादित करते हुए काव्यानत्द वा वारण यनता हैँ, ऐसी निधियाँ कया व्यज्य हो सक्ती है? उन पर व्यय किया गया समय क्या भ्रकार्य हो सबता है रे यह सही है कि भनुसाम्थान पा उचित क्षेत्र पुरातन साहित्य हो होना चाहिए । घाधुनिक साहित्य भ्नुसरपान वा नहीं मूल्यावन शोर समीक्षा था विपय हो सक्ता है। जो विधाएं निरन्तर परिवनशीत है, जो लेखक नवीनं चिन्तन से वरावर परावित दहो रहे हैं भरथवा जो साहित्यिक सिरन्त श्रपने लिए नयीत रूषियो का सजन बररदेरे,उन प्रकिया हुप्रावोरं भी गोत्र बाय पृषं तो जा म्रदुपदिय कहां जायेगा । जिस लेखक के हाथ में श्राज भी लेवनी मौजूद है, बह किसी भी समय श्रपनो ही पूर्व-स्थापित घारणाभो को वेदल सक्ता दं । इसीलिए गाहित्पिव अनुमन्ान चैः प्रयोजन स्प मे हम पुरातन साहित्य वे श्रध्ययन षो श्रधिकं भहत्व देते दै। श्नुसन्धान कौ दृ्टि यदि सदैव भ्रात तथ्यो की सोज पर रहै तो उमक स्वापनाभरो था प्रयोजन स्वलक्षित होगा । यदि वह्‌ श्रपने श्राप को केवल मूल्याकनं तप हौ सौमित कैर लेगा, तो उसकी रचना भ्रालोचना बौ एक सामान्य पुसतक हो सवेगो, उसमे शोध के तत्तरी वी उपलब्धि नहीं होगी । पुरातन साहित्य वी. चेतना को पहुंचानना, उमे मूलभूत लक्ष्यो का उद्घाटनं करना, उसका समुःचन रमाम्वादन कस्वाना-- निश्विय ही लोगों की मानसिक घ्रुवका एमन हो सवता हें । क्या मानक्षिकप्रौर आत्मिक स्तर की दत उपादेयता को उपेक्षित माना जा सवना? क्था साहि त्यकं शौधघ मे प्रयोजन रूप में यह प्रपाधिव तथ्य झनुकरणीय नहीं हैं ? {ग भनुसन्यान मे त्यो का उपयोग : अनुसन्धान के प्रतिपादन म तथ्यो का सक्लने, परीक्ष्य भौर सही उपयोग अभनिवायें हैं । सत्य वी प्रतिष्ठा के लिए यहे एक प्रक्रिया हैं, जिसके द्वारा शोध की भ्य श्रीर इति गौ मिलाया जाता हं । तय्यौ दो प्रामाणिकता कधी तुला पर तौन कर जब शोधार्यी लश्ष्योन्मुख होता हैं, तो उसकी निष्ठा प्रतिभा श्ौर बौशल का थोग तथ्य मे से मत्य की स्थापना बरता हैं । तथ्य वे मृत सकैत रै, जिनके प्रयोग से सत्य कौ जानकारी प्राप्त होती हई । सत्य शाश्वत ह श्रौर तथ्यों वें भ्रभाव में भी विधमान रहता है, किन्तु उमकी अपरिमितता सामान्यत किसी एक जिज्ञासु फे लिए जेय नहीं होती । प्रत्येक जिन्नासु अत्वों द्वारा हाथी की श्रनुमूति जसौ श्रानिर सफलता ही प्राप्त बर पाता हू और सत्य का वहुत बड़ा श उसके लिए मरज्ञान ही वना रहता है। टेव कौ दसी प्रक्रिया से जितने-जितने सय्य अलग-अलग जिज्ञासु के हाय लगते है, उतनी ही मात्रा में उसे सत्याथ उपलब्ध होता हैँ । यही कारण है कि सत्पात्वेपण-. का क्रम शोध के क्षेत्र मे स्व बना रहता है झौर एक जिज्ञासु के द्वारा की गयी सत्य




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