प्रजन कंवर श्याम कंवर की लावणी | Prajan Kanwar Shyam Kanwer Ki Lavni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तक मरमे पिछाशयोजी ॥ कूटो जग संसार सार एक सैजम जा- ण्योजी । श्राज्ञा लेडनें तुरत भोग छटकाया ।महाराज। सुत्रमे अरणव चास्योजी । सु प्रनन ' केवर तरे प्राप सुध संजम पा- | त्योजी ॥ कर श्रष्ट करम को श्रत सिद्ध पद्पाया । महाराज। | कोज सत्र लिया सुपारी जी ॥ पण तीन 1 २८) समृत उग- शीसे पेसट चेव शुद्ध माही । महाराज । तिथी एकम गस्वा- रेजी ॥ ये जुगत बणाई जाड ठालसागर श्रलुमारेजी 1 मेवा देम गढे चत्रक्रोट खुखकारी ॥ महाराज ॥ तीन संत बीछरत श्राया जी॥ हे सब श्रावक गुणवान मेरा दिल लगे सवायाजी ॥ श्री नैदलालजी. मुनी तणा सिष्य गावे । महाराज ॥ गरु मेरा हे उपकारी ' जी ॥ पण तीन सखंम्का ॥ २६ ॥ इती श्री लवणी संपुरण ॥ ॥ श्री कृष्णुजीकी लावनी ॥' ॥ चाल देणकी ! ये कृप्ण और वलमद्र हुवा दोई भाई । महाराज ॥ श्राप जादवकुल -माही जी । लियो सुजम जगर्मे खूर फेल रही कीरत सवाईजी ॥ टेक ॥ ये ढारामवी एक नगरी वीर बखाणी । महाराज | सुत्रमे बरणव चालेजी ॥ विदा कृष्ण भोगवे राज सुख पर जानें पाले ॥ तिण श्रव- मर्‌ बीहरत नेमनाय सिषगामी । महागज ॥। द्वारका नगरी भ्रायाजी ॥ एक सस्ता जन हं भाग वीहा उतर्था जिन




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