प्रजन कंवर श्याम कंवर की लावणी | Prajan Kanwar Shyam Kanwer Ki Lavni
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मरमे पिछाशयोजी ॥ कूटो जग संसार सार एक सैजम जा-
ण्योजी । श्राज्ञा लेडनें तुरत भोग छटकाया ।महाराज। सुत्रमे
अरणव चास्योजी । सु प्रनन ' केवर तरे प्राप सुध संजम पा- |
त्योजी ॥ कर श्रष्ट करम को श्रत सिद्ध पद्पाया । महाराज। |
कोज सत्र लिया सुपारी जी ॥ पण तीन 1 २८) समृत उग-
शीसे पेसट चेव शुद्ध माही । महाराज । तिथी एकम गस्वा-
रेजी ॥ ये जुगत बणाई जाड ठालसागर श्रलुमारेजी 1 मेवा
देम गढे चत्रक्रोट खुखकारी ॥ महाराज ॥ तीन संत
बीछरत श्राया जी॥ हे सब श्रावक गुणवान
मेरा दिल लगे सवायाजी ॥ श्री नैदलालजी. मुनी तणा
सिष्य गावे । महाराज ॥ गरु मेरा हे उपकारी ' जी ॥ पण
तीन सखंम्का ॥ २६ ॥ इती श्री लवणी संपुरण ॥
॥ श्री कृष्णुजीकी लावनी ॥'
॥ चाल देणकी ! ये कृप्ण और वलमद्र हुवा दोई
भाई । महाराज ॥ श्राप जादवकुल -माही जी । लियो सुजम
जगर्मे खूर फेल रही कीरत सवाईजी ॥ टेक ॥ ये ढारामवी
एक नगरी वीर बखाणी । महाराज | सुत्रमे बरणव चालेजी ॥
विदा कृष्ण भोगवे राज सुख पर जानें पाले ॥ तिण श्रव-
मर् बीहरत नेमनाय सिषगामी । महागज ॥। द्वारका नगरी
भ्रायाजी ॥ एक सस्ता जन हं भाग वीहा उतर्था जिन
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