जैनस्त्रीशिक्षा (द्वितीय भाग) | Jain Strishiksha Bhag 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३} करना अनुचित हे 1: राजाके अत्याचारी होनेसे दी राज्यमें विष्छब -(उपद्रव › हते है । परिययुत्रको .म्डनेमुख ' देखनेसे माताको वडा डरो दोता 1 पतिक देखनेते पतित्रताको वडा. उल्छस दता दे । अश्टीट गाच्िं गनिसेदी औरतें बिगड़ ' जाती हैं । ठुम कदापि अपने मुखसे ' गाली वगैरह अरलील वचन नदि वोटना ।.पततिंकी सेवा करनेसे पतित्रताओंकों नडा आहाद होता है । चौपाई १६ मात्रा । ` ` वंेशितं जनपर करूणा केरना । गानी, तज उनका दुख हरना ॥ {अम्ल अधिकसे मति कर भ्रीति। विष्व कारण राज अनीति ॥ १॥ “कर उल्छास पढ़े जो नारी । सो तिय पत्तिकी अति प्यारी ॥ “जो अश्टील गीत नित्त गि । सो नारी अतिशय दुख पे ॥ २॥




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