आत्म बोध सार संग्रह | Aatma Bodh Saar Sangrah
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आात्पशिसामावन्य ७
जो सुख चाषे सुक्तिन, नारी सगातिं मेर ॥ ६० ॥
नारी जगमा ते नली, जिण जायो पुञ्प रतन्ने ।
ते सतिन नित पाय नमु, जगमाते घन धनन ॥ ६४ ॥
तु पर काम करी सदा, निज काञजन करि र्गार।
अव्तत्र नक्षत्र करिय तु, किम छुटिस भव पार ॥ दे? ॥
पाप घड़ों प्ररण भरी, ते लीओ हिर भार।
ते किम छुटिए जीवडा, न करी घर्म लगार ॥ 53 ॥
इसु जाणी कुट कपट, टचि तु 7ड।
ते आडी ने जीचडा, जिन धर्म वचित माड ॥ ३“ ॥
जिण चचने पर दुखं हये, जिण रोय पाणी वरात ।
छश पटे निज आतमा, तज उत्तम ! ते चात ॥ ६७ ॥
जिम तिम पर सुग्व दीजियि, दुरव न दज कोाय।
दुग्ब देः दुग्य पामिये, सुख दै सुग सोय ॥ २६॥
पर तातानिद्ा जो करे, कडा ठेव आद )
मर्म प्रकाल परतणा, तथी मलो चाल ॥ 2७ ॥
पटमरासी ने पारणे, एक सिध टरे आहार ।
करतो वरतेढा नवि र्ट, तसु दुर्गति अवततार ॥ ६८ ॥
रर उपर जिम लेषणु, तिम क्रोघे तप कीप ।
तम नप जप सजम सुधा, णे काज न निद] ६९॥
पृ फोडिने आउ, पाटी चारित्र सार।
खद्टत सुणो सपि तेयु, क्षणम रोव छार ॥ ७०॥
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