प्रवचन-प्रभा | Pravachan-Prabha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५३ जो मतृप्य बन वर चम चसुओ से दखता है, तानी उसे जचा बहतें हैं। सच्चा दृष्टा वही हाता है जो भात्माग्पी चसु से देखना हैं । यती पारनलप्टि आत्म चच्याण वरन बाला होती है । ४ आत्मा दे भूपण हैं - पान और स्वाध्याय । चान और स्थायास वे आमृूपणा से नात्मा का नलडत्त वरन म॑ ही पास्नविव शोभा हैं । ४५ हम अपन जीवन व फिंवएस सा एवं जरय यना लै घौर उम मिल तथः पहुंचने वे निए निरतर धयास बरतें लाएँ। लसफगता स कभी नहीं घयरायं । अमफ जता ही सपजता वी बुजा है ! ८६ साधक पा नदय होता है बाय व सिद्धि परम ज्यात्तिमं वितान हाना परमाम वन! साधक नवहा हिट हौ था मुस्लिम ननद या बश्णवे ल्य मव वा एव हैं वर बनता नारायण बनना खुदा वा पा लना स तुष्य तम्‌ पट्टचन ये भाग अनवर हा सकत है साधने वनव' हा सकते ह । माक अपना यात्मपवित्तं गोर स्वमाच व अतसार साग और साधन चुनता हु जौर वाट जल्दी जौर वार दर सलेरय तेव पहुंचता हैं । ७ सपना आत्मा बा उञ्ज्वत वण्ये मनुप्य मोक्ष तय जा मपताह्‌। ४८ गरीर नश्पर है भनित्य हं तीर अत्मा अनश्वरह नित्य हैं। क्षण नगुर शरीर को सण मगुर मानना सम्यवय है। आत्मा का शाश्वत मानना भी सम्यमच है । इससे विपरीत भानना मिथ्यात्व है । ४९ पंहुनन था चरम यति मेला हो जाए तो जाप लाग वया परत हू ? साउुने भौर जल से धा वर इस स्वच्छ बना तरत हे । भेदविगान भी ण्ददुमा हा मारून है समतिम्पा कल वः माथ आध्यात्मिक शुद्धि मं उपयरागा वनता ह 1 ५० जत्माषा थी दर व दिए सठ मान लिया जाए ता शरार वा सुनाम मानता पडेगा । यदि मुनीम कागतनी सब्यापरार मृधारा हा जाता है ता उसवर पूर्ति मौन बरगा ? सठ बेरेगा सुनोस सही । तीर प्राएं थरंगा ता फल शारमा नगगा पदर सो यही रहे पाएगा । ५१ तप्गा की तप्ति सपा हद है न दाता है, न होगा 1 बह सनुप्य वा पागल घना देती हू नघा बना दती =} 9. उगुता दूध से मित्र टुए पाना मी पा जाता हैं पर हस रसा नहा वरता 1 चह पानी स दूध का अलम भयव ग्रहण करता ह) विवका अप्पा भी घरार सौर शरारी पा भेट समपवार दाना का उनया योग्य हु आदर वर्ता हैं । ग्रवचन परभा]१ ३




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