सनोवर की छांह | Sanovar Ki Chah

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Sanovar Ki Chah by विष्नु शर्मा - Vishnu Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साधना में श्रनगिनत सिर झुक जायें श्रीर फिर उठ मे सकें | पति श्रौर सुच्--केवल यही दो सम्बन्ध ऐसे हैं जो दुनिया की दष्टि में श्ौरत के उलिए पवि है लेकिन वद भी केवल उस समय तक जय तक वद्‌ दीनो उसके संकरे “श्रहम' या उसकी इच्छाओं के मार्ग में चट्टान नहीं न्यनते । शमशेर ने यह सब उतनी साफ़ तरइ तो श्रनुमव नहीं किया लेकिंग -कमला की चाह में घासना के श्रंगारे इतने साफ दिलाई दिये थे कि जलने के डर ने नदीं--वासना की श्रपवित्रता मे शमशेर को उस प्यार जे बागी घना दिया । श्रौर जब एक रात को कमला की फड़कती [5 याद उसे श्रपने में कस लेने के लिए बढ़ीं तो वह उसे धक्का दे कर उष मकान से बाहर चला गया--दमेशा के लिए 1 तिनका भी सागर में डूब गया लेकिन डूबने बाला टूदा नहीं | बह खड़ा रहा उस रेरिस्तान में उस चटान की तरद जिंतमें श्रकेले खड़े रइने की शक्ति तो ज़रूर होती है लेकिन जिसके पयरीले सीने में विशाल नसूनापन द्वीता हे श्रौर जिसकी श्रॉखें ठमय की गददराइयों में फेवल श्रपनी दो परछाईं देखते-देखते पथरा जाती हैं । रात के सीराने में शमशेर की श्राँखों से एक श्रोषि निकल कर उसके चेहरे पर श्रपना रस्ता दता हश श्रोंढों पर जा रुका । श्रौर जब शमशेर की जिहां ने उख श्रो को दद निकाला तो उसके सारे शरीर मे उठकर कटूवा- ष्ट भर गई । इख कमज्ञोर श्मौष्‌ कापता संवारको न्दीलगाश्रौर रेकी ठंडी हवा मे व सू गया } यह मेद केवल शमर श्रीर्‌ उस यत के बीच ही रद्दा-- ग्रे नदी के किनारे की बालू रारद की चॉंदी-सी चदिनी में भीगी डुई थी, जल में किसी सुन्दरी की रुपहली हँसी कीसी मुदुलता थी -११- न




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