स्वतंत्रता संग्राम | Svatantrta Sangram

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Svatantrta Sangram by रामसेवक श्रीवास्तव - Ramsevak Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्वितानी शासन का प्रभाव 9 तथा उसादन की द्रिटेन की वेहतर स्थिति समाप्त हो गयी ! फ्रास बे्तजियम, जर्मनी, सयुक्त राज्य अमेरिका, रूस ओर बाद म जापान ने जपने यहा शक्तिशाली उद्योगो का विकास किया और अपने माल की खपत के लिए विदेशी बाजार की खोज शुरू की । पूरी दुनिया मं नये वाजार के लिए एक गहरी प्रतिस्पर्धा शुरू हुई । दूसरी तरफ, उद्योग मे वैनानिक जानकारी का उपयोग करने के फलस्वरूप 19वीं शताब्दी के अंतिम 25 वर्षो मे अनेक तकनीकी विकास की कई वडी घटनाए घर्ीं । आज का इस्पात उद्योग इसी दौर की देन है । सन्‌ 1850 मे सारी दुनिया के इस्पात का उत्पादन केवल 80 हजार 'रन था यहा तक कि सन्‌ 1870 में यह मामा 7 ताखे टन से कम थी । सन्‌ 1900 में यह उत्पादन 2 करोड 80 लाख टन पर पहुच गया। इसी दोर में आधुनिक रासायनिक उधोग का विकास हुआ। ओद्योगिक कामों में विजली ओर आतरिक दहन से चलने वाले इजनों में पेट्रोल का उपयोग भी इसी काल वी देन है। इसका मत्ललव यह है कि एक तरफ तो ओद्योगिक विकास की गति तेज हुई और दूसरी तरफ उथोगों मे वहुत वडी माता में कच्चे माल की खपत हुई । ऐसा न होता तो सारा ओदोगिक ढाचा ही विसगति का शिकार हो जाता । तेज गति से होने वाले आदयोगिक विकास के कारण शहरी आवादी में निरतर वृद्धि हुई और उसके लिए अधिक से अधिक खाद्य पदार्थों की आवश्यकता पडी । कच्चे माल ओर खाद्य पदार्थों की प्राप्ति के लिये नये और सुरक्षित स्रोतों की विस्तृत खोज सारी दुनिया मे वडे पैमाने पर शुरू हो गयी। अफ्रीका एशिया और सातिनी अमेरिका के देशों मे खोज करने वाले राष््रा में कृषि और खनिज सवधी कच्चे मात क वास्तविकं या सभावनायुक्त भ्रोहोी पर एकाधिकार प्राप्त करने में दूसरे से बाजी मार लेने की होड लग गयी। तीसरी तरफ उद्योग व्यापार के विकास तथा उससे आगे उपनिवेशो ओर उनके बाजारों के शीषण के कारण विकसित पूजीवारी देशों में अपार धन का एकत्रण शुरू हो गया । यह पूजी भी निरतर कम से कम बैंकों निगमों न्यासातथा उत्पादन और मूल्य नियत करने वाने अतर्रप्ट्रीय सपुक्‍त व्यावसायिक सस्थाना में सिमट कर इकटूठा होती गयी 1 इस पूजी को लगाने की जगहों की तलाश करनी थी । सचमुच इस पूजी को उन सबद्ध देशों में लगाने की वडी गुजाइश थी जहा के बहुसख्यक लोग अभी भी गीवी में जी रहे थे । लेकिन इन देशा के मजदूर वर्ग ने सगठित्त होना शुरू कर दिया था अत वडेपमाने पर पूजी लगाने ओर फिर आऑद्योगिक दिस्तार के कार्यक्रम चलाने से उस वर्ग की सौदेवाजी की स्थिति वेहत्र हो; जाती ! परिणाम होता कि पहले से चलने वाले उचोगों में भी मुनाफे मं और कभी । दूसरी तरफ यदि इस पूजी का उपयोग वाहरी देशो में कृषि या खनिज सबभी कच्चे मात के उत्पादन के तिए होता तो कई उद्देश्य एक साथ पूरे हो जाते । इस अतिरिक्त पूजी के विकास की जगह खोजनी ही थी आर क्योंकिइन अविश्सित देशों में मजदूरी की दर बहुत कम थी बडे मुनाफे की पूरी समावना थी । गृह उोर्गो का अस्तित्व क्ये माल पर निर्भर था ओर उसको भो आपूर्ति इसके माध्यम से लो जाती । एक बार फिर विकसित पूजावादी देशों ने एक के बाद एक ऐसे सेत्रों की खोज शुरू की जहा पर वे अपनी अतिरिक्त पूजी लमा सकें 1




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