न्याय का सन्दर्भ | Nyaya Ka Sangarsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। । । 1 गांधीवाद नंवयुग का प्रतोक या युगान्त का ? जीवन का उद्देश्य क्या है ? मनुष्यता के बाल्यकालसे ही यह्‌ प्रइन मनुष्य को परेशान किये है । सनुष्य ने सानवता के उषाकाल से ही समय के सागर के किनारे बैठ इस समस्या के समाधान में कितने ही घरोंदे बनाये ओर फिर सूझ बढ़ने के साथ इन समाधानों की विरूपता से खिन्न हो उसने इन्हें मिटा भी दिया और सुदूर अज्ञेय, अनन्त की ओर देख- देख वह्‌ फिर चिन्ता में मर्न हो गया । हमारे पुवं -पुरूषों ने, जिनके अगाध ज्ञांत को संसार में फंलाने के लिये हम आज भी व्याकुल है, अपनी सम्पूणं मानसिक और शारीरिक शक्ति केवल मृत्यु की समस्या को सुलझाने में व्यय कर दी । जीवन के उद्देश्य को मृत्यु की दृष्टि से ही उन्होंने देखा । चिरसत्य मृत्यु मनुष्य के उद्भव से पुर्व ही मूंह फैला कर उसके मागं में आ खड़ी हुई और मनुष्य अपनी असंख्य कल्पना-विकल्पना से भी उसे परास्त नहीं कर पाया । एक तरह से परास्त कर भी पाया । मृत्यु के भय के कारण ही मत्यु का सब महत्व मनुष्य की दृष्टि में है । हमारे ऋषियों ने कहा- मृत्यु कुछ नहीं, एक भ्रम है, आत्मा शाइवत है । दूसरे आप्त पुरुषों ने निर्धारित किया--संसार ही श्रम है, बन्धन है, इससे मुक्ति ही मृत्यु है। तब मृत्यु से डरना वयों ? मृत्यु तो सुख है ।




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