धर्म की कुंजी | Dharma Ki Kunji
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
58
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १ )
धारक एक समय मेँ मरि सप्तम नरक का नारकी शे जाय दह तथा
चलभद्र नारायण का देश्वयं॑नष्ट दोय गया अन्व की कटा कथा
है जिनकी जारां देव सेवा कर तथा तिनके पुस्य . ऋ दाय दोतते
कोरूःएक सयुष्य पानी प्यावने बाला हू नादीं गया अन्व पुण्य
रहित जीव कैसे मदोन्मत्त वन रहे हैं? वहरि जे धत्तम ज्ञान करि
जगत में मधान हैँ अर उत्तम तपश्चरण करने में उद्यमी हैं अर
उत्तम दानी हैं तेहू अपने शात्माक्ू अति नीचा मानें हैं तिनके
मादेव धसं दोय है! यों विनयवानपनों मदरदितिपनों समस्त
धर्मेको भूल है समस्त सम्यगज्ञानादि गुण को श्राधार
सम्यग्दशंनादि गुखनि का लाभ चादौ दो अर श्मपनां उज्ज्वल
यशं चाहो हो अर बेर का अभाव चाहो दो तो मदनि द त्यानि
कोमलपना थण करो मद् नष्ट हवा विना विनयादिक गुण
वचन की मिष्टता पूज्य पुरुषनिका सत्कार दान सन्मान एक दरू गुण
नादी भप्त दोयगा । अभिमानो का विना रपरा दू समस्त बरी ्ो
जाय दै । अभिमानी की समस्त निंदा करै द । मिमान का
समस्त लोक पतन होना चाहैं हैं । स्वामी हू अभिगानी सेवक क
त्याग है-अभिमानी कँ गुरुजन बिया देने में उत्ताट् रहित दोय है ।
अपना सेवक पराङ्सुख दोजाय मित्र माद दितु. पड़ी याका पतन
ही चाह है । पितां गुरु उपाध्याय तो पुत्रकं शिष्य शू विनय वंत
देख करि दी अनंदिते दोय हैँ । अविनई अभिमानी पुत्र वा शिप्य
वड़े पुरुपनि के मन हं क संतापित करे है । जातें पुत्र का तथा
शिष्य कां तथा सेवक का तो ये ही धर्म है जो नवीन कार्यं करना
दोय सो पिता शुर सरामी कू जनाय करि करे आता मांगि कर
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