श्री सिद्धचक्र नवपदाराधन [विस्तार विधि] | Shri Siddhachakra Navapadaradhan [Vistar Vidhi]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सिरेमल संचेती - Siremal Sancheti
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६... १. ~)
श क कि. सिम से मतिम कनो आद् किय, मो नि निन्मिः कि कस, व, ियीदू दि, कन
के अ (कोकः अको (णे कोः अतिन त-अ कि केके क्कि, केक क्कः म 4
चरण कमल चावीस, एजोरे चावीस; सा भागी श्वावीस; दरागी
चोदीस, जिंदा ॥ कुपुमांजलि मेलो पाश्व जिणंदा ॥२॥।
ही० | दाच खांघे ( खभे ) दोको दीजें । वाद नमा०
कहें |
गाथा |
सम्म दिट्टी देशजय, साहु साहुखी सार ।
अआचारज उवज्काय मुणि,जी निम्मल आधार ॥ १ ॥
ढोल ।
चाबिह संघे जे मन धार्यों, मोक्ष तणो कारण निर-
धार्यो । विवि” छुसमबर जाति गद्देदी, तसु चरणे प्रण
मन्त ठववी-॥ १॥ इ्युमाजल्ति गेलो वीर जिखदा ॥ तोर
चरण कमल चावीस पजोर चांदीस साभागी, चोदीस, वरागी
चांवीस जिखणुंदा, - कछुमरमाजिलि मेला वीर जिंदा 1२11
च£ हा० ॥ कुसु० ॥ मस्तक में टोकी दीजे । चमो5ददत्सिद्धा०
कदी चमर दाथ मं ठीजे ॥ इति पांखडीगाथा ॥।
वस्तुः].
सयल जिनबर सयल जिनंवर नमिय मनरग । कल्ला-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...