श्री सिद्धचक्र नवपदाराधन [विस्तार विधि] | Shri Siddhachakra Navapadaradhan [Vistar Vidhi]

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Shri Siddhachakra Navapadaradhan [Vistar Vidhi] by सिरेमल संचेती - Siremal Sancheti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६... १. ~) श क कि. सिम से मतिम कनो आद्‌ किय, मो नि निन्मिः कि कस, व, ियीदू दि, कन के अ (कोकः अको (णे कोः अतिन त-अ कि केके क्कि, केक क्कः म 4 चरण कमल चावीस, एजोरे चावीस; सा भागी श्वावीस; दरागी चोदीस, जिंदा ॥ कुपुमांजलि मेलो पाश्व जिणंदा ॥२॥। ही० | दाच खांघे ( खभे ) दोको दीजें । वाद नमा० कहें | गाथा | सम्म दिट्टी देशजय, साहु साहुखी सार । अआचारज उवज्काय मुणि,जी निम्मल आधार ॥ १ ॥ ढोल । चाबिह संघे जे मन धार्यों, मोक्ष तणो कारण निर- धार्यो । विवि” छुसमबर जाति गद्देदी, तसु चरणे प्रण मन्त ठववी-॥ १॥ इ्युमाजल्ति गेलो वीर जिखदा ॥ तोर चरण कमल चावीस पजोर चांदीस साभागी, चोदीस, वरागी चांवीस जिखणुंदा, - कछुमरमाजिलि मेला वीर जिंदा 1२11 च£ हा० ॥ कुसु० ॥ मस्तक में टोकी दीजे । चमो5ददत्सिद्धा० कदी चमर दाथ मं ठीजे ॥ इति पांखडीगाथा ॥। वस्तुः]. सयल जिनबर सयल जिनंवर नमिय मनरग । कल्ला-




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