श्री आवश्यक-सूत्र सार्थ | Shri Avashyak-Sutra Sartha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७) दाब्दार्थ-- लोगस्स-छोकमें । उज्जोयगरे-उद्योत (प्रकाश) करने वाले | धम्मतित्ययरे-घर्मरूप तीर्थ॑को स्थापित करने वाले । जिणे-राग देष. को जीतने वाले । अरिहन्ते-कमंरूप शत्रु का नाश करने वाले । चउवीसंपि-चौवीसौं । केवी-केवलन्ञानी तीर्थकरों कौ । , कित्तदस्सं-मं स्तुति करता हूं । उसभं-श्री ऋषभदेव स्वामी को } च ओर । अजियं- श्री अजितनाथ जी को बन्दे-वन्दना करता हूं । श्री संभवे-संभवनाथ स्वामी को अभिणंदणं च - भर श्री अभिनंदन स्वामी को। सुसइं-श्ी सुमतिनाथ प्रभु को । च-और | पउमप्पहुं-शरी पद्मप्रभ स्वामी को । सुपासं-श्री सुपादर्वनाथ प्रभुको ! जिणगं च चंदप्पहुं-ओर श्री जिनेदवर चंद्रप्र को। वंदे-वन्दना करता हूं । सुर्विहि-श्री सुविधिनाथ जी को । च--और । पुप्फदंतं- श्री सुविधिनाथ जी का दूसरा नाम श्री पुष्पदंत भगवान्‌ को । सीयल-'श्री चीतलनाथ जी को 1 सिज्जंस--श्री शरेयांसनाथसी को । वासुपुज्जं-श्री वासुपूज्य स्वामीं को । च~-मौर ! विमङ-श्री विमल- नाथ जी को । अणंतं च जिणं-श्नो अनन्तनाथजौ को! धम्मं--श्री घमनाथजी को । च-भौर्‌ । सति--श्री शान्तिनाथजी को । वंदानि-- वन्दना करता हूं । कुथुं--श्री कुथुनाथजी को । अर-प्री अरनाथजी को । सल्लि--श्री मल्लिनाथजी को । वंदे~वन्दन कंरता हं | मणियुव्वयं--श्री मुनिसुन्रतजी को । च-भौर। नमिजिणं-श्री नमि- ताथ जिनेदवर को । रिट्रनेसि--श्री अरिष्टनेमि (श्री नेसिनाथजी )) को । पासं--भीपादवंनाथजी को । तहु-तथा । वद्धमाणं-श्री वद्ध॑मान (महावीर स्वामी ) को । बंदामि-मे वन्दना करता हूँ । एवं-इस प्रकार । सए-मेरे द्वारा । अभित्युआ-स्तुति करते हुए । विह्परय-




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