जैन शास्त्रमाला [खंड 2] | Jain Shastramala [Vol. 2]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९५
हुआ है. १२ क्रीड सुंबणका मालक आनंद गाथापति नैसां
धनादथ् भी वत अंगीकार ऊर सका, इससे पाप होता है
कि व्रत अगीकार करनेमें छ्ष्मी कोइ बाधा नहीं करती.दै
.. आनंद श्रावक मथम तो जैन धमसे अज्ञ था, मगर श्री
महावीर भयुके दशेन होने फे पशे, पूर्व भवेम अनेक म्रका-
के अनुभवोंसे वदद आत्मा रुपी क्षेत्र सुधरता सुधरता
संस्कारी तो अवश्य हुआ या; मतलश्र किं वो ‹ मार्गा
सारी तो हभ ही था. पिरे भगान के सदुपदेशसे “धावकः
हआ, वत अगीकार किये, पछि ?१ परिमा. आद्री, ओर
अखीरमें देह ओर आत्माका भेद बरावर अनुभवः आनेसे
संथारा कर दिया, इस तरह क्रमशः उनकी आत्मा उन्नतिंक्रमकी
सीढी पर चती २ परमपदको भ्त हुई
* त्रत * ये कुछ खाली शब्द नदं है, हमेश्च के छोटं-वडे
तमाम. कायाम आचारणशुद्धि ओर विचारशद्धिका पठन हो
ऐसा निश्चय करना उसीका नाम ८ वत ` है, व्रतधारी , भाव-
कका -द्ररोजका जीवन शुद्ध होता है).उनक्ा .पत्येक -कार्व-
दाब्द-विचारमं दया और यत्नाका समावेश होता है, उनका
लक्ष बिंदु-परम.पद ही है. इस लिये ' वरत ' पाटनं करनेके
लिये दररोज फनरमे करने योग्य भवना निचे दी गई हे
में निश्चय करता हूं कि |
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