चरित्र की सच्ची कुञ्जी | Charitra Ki Sachchi Kunji
श्रेणी : स्वसहायता पुस्तक / Self-help book
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १५ |]
सम्बन्ध सांसारिक नियमों में नहीं है और न
उनका एथक् अस्तित्व ही है । वे सव इस कारण से
पैदा होते हैं कि हम पदार्थों के शुण धर्म सेः
अपरिचित हैं ।
यद ।
मनुष्य के जीवन का आधार सन है । सन से
ही सिनन २ दत्ाधयें उत्पन्न होती और बनती हैं ।
उन सब का फल भी सन ही भोगता है। सोह
और ज्ञान के उत्पन्न करने और सत्यता के पह-
चानने की चाक्तियाँ भी सन के सलीतर ही है ।
हमारा जीवन एक करवा है । उस पर
मन-रूपी जुलादा विचार-रूपी सत से भले बुरे
कामों के ताने-वाने करके चरिश्र-रूपी वस्त्र को
बनाता है ओर उस वस्त्र में अपने को ऐसे लेट
छेता है जिस प्रकार रेदास का कीड़ा अपने
सन को विशुद्ध करो, तुम्हारा जीवन भी खुदर,
सुखी ओर शात दोगा |
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