चीकागो प्रश्नोत्तर | Chikago Prashottara
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चिकागों प्रश्नोत्तर ६
उत्तरपक्ष-क्चा तुम नदीं जानते जो वो तरहके इरवर मताव-
छंबीयॉने माने हे ? एक तो जगदुस्पत्तिसे परिखा. कवर एकही
इेर्वरः था जगत्का उपादानाकिकि कोहं भी कारण वा ठससरी वस्त
नंही थी एकी शबद सचिदानंदादि स्वरूप युक्त परमेद्वर था
एकेक जीवोको ता एेस। इद्र जगत् वा सवं वस्तुका रचने वाखा
अभिमत है ओर दसरोने तो जीव (१) परमाण (२) आकाश्च (३)
काल (४) दिशादि सामधी (५) वाला एतावता उक्तविनेषण संयक्त
एक तो इर्वर और दूसरी सामग्री जिससे जगत् रचा जावे यह
दोनों वस्तु अनादि ह अर्थात् एक तो इंइवर और दूसरी जगत
उत्पन्न करनेकी सामग्री यह दोनों किसीने बनाये नहीं ऐसे माने
हैं,तमको इन दोनों सतोंमें से कौनसा मत सम्मत हे ?
पवंपक्ष-हमको तो प्रथममत सम्मत हे,क्योंकि वेदादि शास्त्रों
में ऐसा लिखा हे तथाहि ॥
“एतस्मादात्मन आकाशः संभूतः आकाश्चाह्यायुः वायोरग्निः
अग्नेरापः अद्भ्यः प्रथिवी पएरथिव्या ओषध्यः ओषधिभ्योऽनस्नंअन्ना
द्ेतः रेतसः परुषः सवा एष परुषोन्नरसमयः” यह तेत्तिरीय शाखां
की श्रति हे, तथा “सदेव सौम्येदमथ आंसीदेकमेवाद्धितीयं तदैक्षत
बहुःस्पर प्रजायेयेति यह श्रुति छांदोग्य उपनिषदृकी हे तथान
सदासीन्नो सदासीत्तदानीन्नासीद्रजो न व्योमपरोयतत् किमावशीवः
कहकस्य शर्मण्यप्मः किमासीदगहनं गंभीर “यह श्रुति ऋग्वेद की
है, “आत्मा वा इदमयआसीन्नान्यत्, किंचिन्मिषत् स इंक्षतलोका
नस्रजइति”यह एंत्तरेय ब्राह्मणकी श्रुति हे इत्यादि अनेक श्रृतियों
से सिद्ध होता है, जो खष्टिसे पिरे केवर एक इदवरही था, न
जेत् था ओर न जगत्का कारण .था-षुकही इदवर शुद्ध स्कृरूप
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