सप्तभङ्गी नय | Saptabhangi Naya

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Saptabhangi Naya by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९ ) अनक हु। द्रत्यरूपस ताः एर ह क्याक्ति मतकारूप द्रव्य एक हे और सामान्य हे ओर पर्याय रूप से अनेक है, क्योंकि रस गन्ध आदे अनेक ''पर्थ्यीय रूप है एकान्त अर अनकान्त । एकान्त दो भकार है अथाव सम्यङ्‌. ओर मिथ्या इसी तरदद अनेकान्त भी दो प्रकार का है । एक पदार्थ में अनेक धर्म होते हैं । इनमें से किसी एक घ्मे को प्रदान कर कहा जाय और दूसरे धर्मों, का -निपेध नदीं किया जाय. ता सम्यक्‌ एकान्त ई. यदि किसी एक धर्म का निश्चय कर उस पदार्थ के ओर सव धर्मोका निषेध किया जायं तो बह मिथ्या एकान्त दै । ह पयक्च अनुमान ओर-आगम भरमाणा से अविष पक वस्तु मेँ अनेक धर्मो का-निरूपण करना सम्य अनेकान्त हे ! प्रत्यक्षादि भाणो से विरुद्ध एकर चस्त में अनेक धर्मो की कर्पना करना मिथ्या




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