रयणसार | Rayansar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्ति ये (एदे) ये (सत्ततरिया) सतत्तर (दंसवसावयगुणा) सम्यर्दुष्टि
स्रावक के गुरा (भणिया) कहै गये हैं ।
अथे-आठ मूल गुण. वारह उत्तर गुणो का प्रतिपालन, सात व्यसन सात भय
ओर पच्चीस मल दोषो का परित्याग. वारह भावनाओं का चिन्तन, सम्यग्दर्शन
के पांच उतिचागें का परित्याग, देव शास्त्र गुरु में मिविध्न भक्ति ये सम्यर्दुष्टि
श्रावक के सतत्तर गुण कहे गये है)
आर मूल गुण-(अ) मद्य (णराव) त्याग (२) मांस त्याग (३) मधु (शहद)
त्याग (४) बड़ (५) पोपल (६) पाकर (७) ऊमर गुलर (८) कट्म्बर (अंजीर) फलों
का त्याग 1
(व) पांच अणुब्रत व मद्य मांस, मघु (तोनमक्कार) का त्याग 1
(स) (१३ मद्य त्याग (२) मास त्याग (३) मधु त्याग (४) रात्रि भोजन त्याग
९५) पांच उदम्वर फूलों का त्याम (६) पंच परमेष्टी की नमस्कार (७) जीव दया
(८) जल छानना |
वारह उत्तर गुण-श अणुन्रत, ३ गुणब्रंत और '४ शिक्षात्रतं 1
४५ अणुब्रत--(१) अहिसाणुब्रत (२) सत्याणुब्रत् (३) अचौर्याणुन्रत (४) ब्रह्म-
चयोंणुब्रत (५) परिग्रहपरिमाण अणुब्रत \
३ गुणब्रत-(१) दिग्वत (२) अनथेंदण्डब्रत (३) भोगोपभोग परिमाण 1
४ शिक्षा ब्रत-(१) देश ब्रत (२) सामायिक (३) प्रोपघोपवास (४) अतिथि
संविभाग 3
वरह भावना--(१) अनित्य (२) भणरण (३) संसार (४) एकटव
(५) अन्यत्व (६) अशुचि (७) आस्रव (=) संवर (९। निर्जरा (१०) लोक
(११) धमे (१२) बोधि दुलभ ।
सम्यग्दषेन के ५ अति्चार-(प) शंकां (२) कांक्षा (३) विचिकित्सा (४) अभ्य
दृष्टि प्रशंसा (५) अन्य दृष्टि संस्तव ।
देवगुरु समथभक्ता संसार सरीर भोगपरिचित्ता !
रयणत्तयसंञुत्ता ते मणुवा स्िवसुहं पत्ता ।१€॥
अएलायं कुन्दकुन्व 5
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