स्वास्थ्य रक्षा : नारी धर्म विज्ञान | Swasthya Raksha : Nari Dharma Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वास्थ्य र्त १७ त कि फरनगगनकात एकल शौच प्रात काल रत्नि के चौथे प्रहर में भर्थान्‌ चार बजे उठकर खवते पृदले विस्तर पर वैठकर पोच मिनट वक ईऽवर का ध्यान करे भोर फर शा कर घासी सुद्‌ उेद्‌ पाव या आध सेर पानी पीकर टले ! यसे पाखाना साफ आयेगा ओर द्वज सदी लगी 1 पदले पहल सर्दी दवा जाने का ढर दै। क्न्तु उसकी परवाद न करनी चाहिए, वद्द स्वयं अच्छी देव जायगी । शौच देकर छाव- दस्उ ले लेने पर मुत्रेन्द्रिय की साल इटाकर ठण्ड़े पानी से अच्छी तरह था डालना चाहिए । इसके घाद दठौन, स्नान छादि करना चाहिए । तत्पदचात्‌ सन्ध्या सूर्यं उदय से पूर्व चारो की छाया में समाप्त कर देनी चाहिए इतने काम सूये उद्य के पूवं भवश्य दा जाने चाहिये । सन्ध्या का ल्त आदि भगे ववाया जायगा 1 तलधुराञ्च भाचीनशाल से यह्‌ घाव चली भादी है कि जव षाड पेशावर जाता हैँ तथ्र एक पात्र में जल ले जाता दे । पेशाब हे। लेने याद्‌ इन्द्रिय को पानो से था डालवा है। कोई कोई गमद का एक सिरा मिगाकर ले जाते हैं उसी से थो देते हूं । गमद्ले में जल ले जाना अच्छा नहीं, क्योकि वदद पानी दाथ को गरमी से गरम दा शाहा है। ठणडे पानी से दी धाना दिंवकर दै। यह बड़ा दो लाभदायय दै । किन्तु घान कल लो ने दते स्वल झुद्धि का दी




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