राधास्वामी मतखण्डन | Radhaswami Matkhandan
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
60
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
वच. भा. २१.३८ द. २८ ॥
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और .
' , सुरत राधस्त्रामी पद् अव्वल से उतर कर सव्यलोक में
ठहर भोर यहां से फिर नीचो उतर फर च्रिष्ुटि भादि स्थानों
में उतरती ङ्गं नीचे भां ॥ इ० १२॥
{ समोच्चक ) वेदो के प्रमायो से पै हौ सिच कर दिया गथा ड कि परमात्मा
संगत है चौर व्याग मौ वन्मा०२ ०१९ ० २४ सें मान चुके हैं कि परमात्मा सब जगह |
मौनूद है तो फिर यह कहना ष्याप का कि सत्त राधास्वामी फ्द 'अव्यल से उतर कर {
नीचे उतरो और उतरतों र नीचे घलो च्या मिधथ्या चच्या, क्योंकि नोचे 'चलो ष्याई तो
फिर ऊपर नी रही ऐसे सब नगद मानना ाप का कहा रहा जो सब जगह है उस
में उप्तरना चना प्य[ना जाना नरी बन सक्ता क्योकि जदा च्वाई कदोगे वदा पद्दिकषे सै
खे च दरूसरे यद मौ कद घुके हैं ष्यौर प्रमाणो से सावित कसुके हैः कि वह किसौ तर |
का प्रसर धारण नरी करता ष्यौर न किसी माता पिता के खयेग॑ से उत्पन्न होत 7
च्यौर यह मौ लिख चुके है कि वह शुदश्वर.प डे मल मूच भरे ष्टौ हाङ् मास से प
रये खश रौर मे कमो नरौ चता देखो मनुनो ने कदा ई- #
अ्रस्थिस्थुणं खायुयुतं सांसशरोणितत्तेपनम् ॥
चमेवनद्धं दुगेन्थि पृ मूत्रपुरीषयोः ॥
मनु० अ० ६ दलो ७६ ॥
अपने व्याप अवतार वनरठे बुद्धिमान् लोग च्राय कौ बातों मे कमी नही व्यासक्त
क्योकि जितनी बातें प्याप ने कह उनका कोई मौ प्रमाय नदौ चयौर प्रमागशरुन्य बात का
| के समभर मनुश्य मान्य नही क्षरता खाय ने केवल फारसी शार्ूरों मालानार,म!
ष्मौर दूमरौ जवानो के प्रमा देकर वाति की ह द ब्रह्मविदा के यपो का प्रमाण देते
तो मान्य होता पर दो कषा से पराप तो कुक पठ नही प्यौर न किसी से उपदेश लिय!
(व०भा०९द्० इर)
पवणन नकन अ क~ -- ---- ~
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नो व्रद्य॑विया कै कोड सरथ पठ होते तो नानते परमात्मा क्या है च्चाप के सो '
से ष्याप की वासौ चौर प्र का उपदृश प८ने से नान पडता है कि व्यापने परमात्मा को '
नदी जाना---यदि आप का मनघडत कथन भो मान से कि ( हम) परमात्मा झे गा
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