महात्मा ग्वीसेप मेज़िनी | Mahatma Gvisep Mezini

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Mahatma Gvisep Mezini by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) गवर्न्मेरटको मनुष्योने अपनी सलाई के लिये बनाया है। वरन्‌ चह ऐसी दशा है जिसको उन्होंने झवश होकर अपने ऊपर खीरूत क्रिया है । अततपव प्रत्येक अन्य जाति की गवन्मेरड किसी अन्य देश या जाति के लिये निस्सन्देद सोशल ईंसटिख्य शन नदीं है वरन्‌ एक अत्याचासी काय्यै है जो उन की इच्छा के प्रतिकूल है सुष्टिकर्ता को एक जातिविशेष के मनुष्य का पक समाज-विशेष में उत्पन्न करने से तात्पर्य यह है कि वे जिस समाज में उत्पन्न दुष्टौ उसके हानि लाभ का विचार कर उसके लिये नियम वनाव॑ और अपनी जन्म भूमि की रक्षा किसी अन्य ज्ञाति से करे । यदि इस भाव से देखा जाय तो किसी अन्य जाति के राज्य का चाहे चहद कैसा ही अच्छा क्यो न दो खुष्टि नियम के अनुकूल होना कदापि सम्भव नहीं है । यदि एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य को अपने धीन करके दास बनाना खृष्टि-नियम तथा राज्ञनियम विर श्रौर दर्डनीय है, तथा सभ्य-परिपारी बालौ मे श्रखभ्य शर अनुचित शिना जाता है, तो इसी माति पएकज्ञाति का (जो कि मनुष्य विशेष के समुदाय को कहते है) दुखरी जाति को उस की इच्छा के प्रतिकूल पराधीन या परतंत्र करना झथवा उस पर शाखन करना क्योकर उचित तथा सभ्य माना जा सकता है । फिर सृष्टि झनुकूल भी कदापि नहीं हो सकता। यदि परा- घीन जाति इस बात को नही विचारती तो इसका कारण यह्‌ है कि उनकी चिरकालकी पराधीनतासे उनके हृदय का यह्‌ पवि्र-भाव चु जाताहदै और साइसकी यन तथा मानसिक विचारः की लघुता उनको इस पवित्र सचा के सोचने के भी श्रयोग्य कर देती है। इस उदाहरण को संभल रख कर तो हमारा मन यही उत्तर देने को करता है कि किसी अन्य जाति का राज्यशासन इमारे लिये उचित और कल्याणकर नदीं हो




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