दिव्य जीवन | Divya Jeewan

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Divya Jeewan by मुखसंपत्तिराय भण्डारी - Mukhsampttiray Bhandari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५५ दिव्य विचारों का प्रभाव मजुप्य कहा करते हैं कि--“शाई ! झव दम थक गये। वेकाम हो गये) श्च परमात्मा टम संभाले तो अच्छा हो) षे दस रने को रोते रहते है कि दम वड़े श्रभागे है--कमनसोव है-- दमाय भाग्य पुट गया है-दैव हमारे विरुद्ध है, हम दीन हर शरीव हैं । हमने सिरतोड़ परिश्रम कियां, उन्नत होना चाहा; यर शाग्य ने हमें सहायता न दी । पर वे. चेचारे इस बात को नहीं जानते कि इस तरह के अन्धकारमय, निराशाजनक विचरर रखने से-इस तरह का रोना रोने से--हम झपने हाथ झपने भाग्य को फोड़ते हैं, उन्नतिरूपी कौसुदी को काले बादलों से ढक देते है। वे यह नही जानते किस तरह के कुवियार हमारी शान्ति, सुख श्र विजय के घोर शत्रु है । चे यदहं चात भूले हुए हैं कि इस तरह के विचारों को मन से देश-निकाला देने दी में मड़ल है। इसी से इन विचारो को झात्मा में बैठाकर ये झपने हाथ झपने पेय पर छुठाराघात कर रहे हैं । कभी एक क्षण के लिये भी झपने मन में इस विचार को स्थान मत दो कि दम बीमार हैं--कमज़ोर हैं ( दो यदि शाप चीमारी का तथा कमज़ोरी का झन्लुभव करना चाहें तो भले ही ऐसे विचारों को अपने मन में स्थान दीजिये । ) क्योकि इस तरह का विचार शरीर पर इनके अक्रमण होने में सहायता देता है। दम सब शझपने विचारों दी के फल है। उच्चता, मदानता श्चौर पविता के विचारों से हमें ' ्ात्म-विश्वाख प्राप्त होता है--उँची उठाने वाली शक्ति मिलती है शोर दर्जे का सादस प्राप्त होता है यदि राप किसी खास विषय मे अपनी अपूता प्रकरः करना चाहते हैं [तो श्राप श्चपने श्रभिलदित विषय मे उच्च आादशं कोलिप इए प्रविष्ट हो जाद श्रौर तष तक श्राप श्चपने




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