साहित्य मीमांसा | Sahitya Mimansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य क्या हैं !- ११ पुराना पड़ गया है, किंतु उनकी रचनाएँ आज थी... इतनी ही नवीन हैं, जितनी कि वे अपने सचयिता' के जीबनकाल मेंथीं। तर यह सब इसलिए कि महाकति कालिदास मनुष्य के मतोवेगों को तरंगित करते हैं; और मनोवेग ब्यक्तिरूप में प्रतिक्षण बिलीन होते रहने पर भी अपनी संतति के रूप में श्नैत काल तक श्रविच्छिर्न बने रहते है । संभव है कि समय की प्राति श्रौर सम्थता के विक्रास फे साथ-साथ हमारे मानसिक वेगो, प्रेमतंतुद्नों तथा कल्पनासूत्रों मे भी परिवतेन आ जाय, किंतु इसमे संदेह नहीं कि हमारे मनोवेग सदा मनोवेण वरन रहैगे और हमारे सूचम शरीर में व्याप्त होने के कारण वे सदा हमारे स्थूल शरीर को झपना, वशंबद बनाए रखेंगे। वस्तुत: विकास की प्रक्रिया हमारे विचारो का परिष्कार करती है, उरुका हमारे मनोवेगो पर ` कोई प्रभाव नहीं पडता । रामवनवास के अनंतर जंगल मे अपने ज्येष्ठ आता राम की चरणसेवा मे निरत हुए लच्मण के मन मे श्रपने भाई भरत को दुलबलसहित अपनी ओर आता देख जो करोधाम्नि भडुकी थी बद आज भी उस परिस्थिति मे पड़ने पर हम सब के मन मे उसी प्रकार प्रज्वलित हो सकती है । दुष्यंत के प्रेमपाश में फेंस उसकी स्नेहवीचियों से षवित हुई तापस शहुंतला को उसके द्वारा भरी सभा में प्रत्याख्यात होने पर जो असंतुद निराशा हुई थी वह श्राज भी उस. परिस्थिति मे पुने पर हर ॒धमप्राण रमणी को हो सकती है। हजारों बरस बीत जाने पर भी लक्ष्मण श्रौर शढुंवला की




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