जैन साहित्य और इतिहास विशद प्रकाश [भाग 1] | Jain Shitya Or Itihas Vishd Prakash [Bhag 1]

Jain Shitya Or Itihas Vishd Prakash [Bhag 1] by जुगल किशोर मुख्तार - Jugal Kishor Mukhtaar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जुगल किशोर मुख्तार - Jugal Kishor Mukhtaar

Add Infomation AboutJugal Kishor Mukhtaar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भ० महीवीर जीर उनका समयं ` ६ वज त श्रेणिक राज्य करता था, जिसे विम्बसार भी कहते है । उसने मगवानुकी परिषदोने--समवशरण सभाभोमे-प्रधान ममि लिया है श्र उसके प्र्नो पर बहुतसे रहस्योका उद्घाटन हुआ है । श्रे खिककी रानी चेलना भी राजा चेटककी पुत्री थी श्रौर इसलिये वह सिति महावीरकी मातृस्वसा ( मावसी ) 1 होती थी । इस तरह महावीरका अनेक राज्योके साथमे शारीरिक सम्बन्व मी था। उनमें आपके घर्मका बहुत प्रचार हुआ और उसे अच्छा राजन्नथ मिला है । - विहारे समथ महावीरके साथ कितने ही मुनि-भाधिकार्मों तथा श्रावक- बाविकाओोका सघ रहती था । श्रापने चतुविघ सपकी श्रच्छी योजना भौर बड़ी ही सुन्दर व्यवस्था की थी । इस सधके गणघरोकी संख्या ग्यारह तक पहुँच गई थी झऔर उनमें सबसे प्रधान गौतम स्वामी थे, जो “इत्द्रसुति' नामसे भी प्रसिद्ध हे भर समवसरसणुमें मुख्य गणघरका कार्य करते थे। ये गौतम-गोत्री श्रौर सकल बेद-बेदागके पारगामी एक बहुत बडे प्राह्मण विदान्‌ थे, जो महावीरकों केवलज्ञानकी सप्राप्ति होनेंके पश्चानु उनके पास अपने जीषाऽनीव- विपयक सन्देहके निवारणारथ गये थे, सन्देहकी निवृत्तिपर उनके शिष्य बन गये थे और जिन्होंने अपने वहुतसे शिष्योके साथ भगवानुसे जिनदीक्षा लैली थी । अस्तु । तीस & वरषके लम्बे विहारको समाप्त करते भर कृतकृत्य होते हुए, भगवान अभिजित नक्षवमे हुई है, जैसा कि घवल सिद्धार्तके निम्न वाकयसे प्रकट है-- वासस्स पढममासे पढ़मे पवखम्मि सावणे बहुले । पाडिवदयुष्वदिवसे तित्थप्पत्ती दु भरभिनिम्हि ॥२॥ 1 कुछ सवेत्ाम्बरीय अरन्थानुसार 'भावुलजा-ममूजाद वहन । & घवल सिदधन्तमे--भ्रौर जयधव्मे मी--कुचं भ्राचायकि मवान्रुस्ार एक प्राचीन गाथाके आधार पर विहारकालकी सख्या २६ वर्प ५ महीने २० दिन भी दी है, जो केंवलोत्यत्ति श्र निर्वाशुकी तिथियोको देखते हुए ठीक जान पढती है। और इसलिये ३० वर्षकी सह सड्या “स्थूलरूपसे ' सर्ममकनी चाहिये । वह गाथा इस प्रकार है--- वासाणुणत्तीस प्रच य माते य ॒वीसदिवसे य 1 चडविहम्रणएमारेहि वारहदहि गरोदहि विहरतो ॥१॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now