गीता सत्ययोग [भाग 1] | Geeta Satyayog [Bhag 1]

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Geeta Satyayog [Bhag 1] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२) ` सत्य भवेक | . [ 81 हतीय पेड । सत्य प्रवेक । ननी निक बहा स्पासनेऽपिसारा दाने पट्‌ पद वत्‌ (४.१६ सास्य दरे) छरथः-पनेकः शरासन शौर भतेक गुदो की उपा में सार माच प्रहणु एरे, शौर के ससान । पूल हक ही. सत परायः. सव मलुप्य चाहते है शौर दख पाने की ४ >> लाला मं यथा बुद्धि तारतम्य प्रयत्म भी फरते हैं, कोई भजन कसते ' हैं, कोई पूजन करते हैं,. कोई ऊप, ठप, ने, ब्त (उपवास) यश, दान श्ौर पुरय करते हैं। कोई तीर्थ यात्रा दे लिये द्वारका, जगदीश, रामेश्वर इत्यादि सका, सदीना, गिरनार जाते दै । कोई मंदिर, गिरजा, मसलिद्‌ जाकर स्तुति इवादत करते हैं, श्रौर कोई संध्योपासनादि ब्रंदन करते हैं। कोई सनातन हैं, कोई श्राया है, कोई इसलासी, ईशाई; घौद्ध घर जैनी इत्यादि हैं। इनमें कोई नियुंण पर सशुण, रा, ष्ण, शिव श्र पार्वती इत्यादि उपासक हैं। कोई वादी, यष्टी, सिया, खुन्नत, श्रःवरी, दिगभ्वसी शरोर चारवाक लैली होते हैं। परस्पर धनेफ प्रकार से वाद विवाद फरते हैं; धर चहुधा प्रतियोगी लड़ाई झगड़े इसमें खड़े होते हैं, छोई २ प्राणापंण के लिये भी त्यार रदते हैं । मज़दबी जोश में' कई ' प्राश ' घाचिर श्रभियोग हो छुसे दे. । यद




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