ईश्वर | Ishwar
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
670 KB
कुल पष्ठ :
38
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसी प्रकार शिवपुराणमें स्वयं महेश्वरका वचन है--
निधा मिच्षो हहं विष्यो बह्माविष्णुहराल्यया ।
सर्गरक्षालयगुणैः निषठोऽयं सदा हरे ॥
अहं भवानयं शैव रुद्रोऽयं यो भिप्याि।
एकं स्यं न भेदोऽसिि मेदे च बन्धनं भवेत् ॥
हे विष्णो | सृष्ट, पाटन तथा संहार इन तीन गुणोके
कारण मै ही बरहा; विष्यु ओर रिव नामके तीन मेदसे युक्त हूँ |
हे हरे ! वास्तवमें मेरा स्वरूप सदा मेद-हीन है। मै, आप, यह
(ब्रह्मा) तथा रुद ओर अगे जो कोई भी होंगे इन सबका एक
हीरूप है, उनमें कोई भेद नदीं है, भेद माननेसे वन्धन
होता है ।
मागवतमें भी खयं भगवानूका व्चन है--
अहं तरता च सर्वश्च जगतः कारणं परम् ।
आत्मेश्वर उपद्रष्टा स्वयंडगविज्ञेषणः |!
अालमायां समाय सोऽहं गुणमयी द्विज ।
एवन् रक्षन् हर् विशं दपर सज्ञां कियोचिताम् ॥
हम, रहा ओर शिव संसारके परम कारण हैं, हम सबके
आत्मा, ईथर, साक्षी; स्वयंप्रकाशा और निर्षिशेष हैं । है
ब्राह्मण ! वह मैं (विष्णु ) अपनी न्रिगुणमथी मायामें प्रवेश करके
संसारकी सृष्टि, रक्षा तथा प्रलय करता हुआ भिन्न-भिन्न का्योंके
अनुसार नाम धारण कता हँ |
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